राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि कार्य संरचना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य संरचना

संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघचालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। वर्तमान में संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचपन हजार से ज्यादा शाखा लगती हैं। वस्तुत: शाखा ही तो संघ की बुनियाद है जिसके ऊपर आज यह इतना विशाल संगठन खड़ा हुआ है। शाखा की सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।
संघ की रचनात्मक व्यवस्था इस प्रकार है:
- केंद्र
- क्षेत्र
- प्रान्त
- विभाग
- जिला
- तालुका/तहसील/महकमा
- नगर
- खण्ड
- उपखंड
- मण्डल
- ग्राम
- शाखा
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं:
प्रभात शाखा:-
सायं शाखा:-
रात्रि शाखा:-
मिलन:-
1.साप्ताहिक
2.पाक्षिक
3.मासिक
संघ-मण्डली:-
महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "संघ-मण्डली" कहते है।
मुख्तत: संघ के कार्य को अलग-अलग भागों में बांटा गया है।
बालकार्य:-
महाविद्यालयीन विद्यार्थी कार्य:-
व्यावसायिक कार्य:-
इसमें समस्त कार्यकर्ता और स्वयंसेवक शामिल हैं जो व्यापार, व्यवसाय, नौकरी करने वाले व्यक्ति, किसान, आदि शामिल हैं।
वैसे कभी-कभी उन कार्यकर्ताओं को लेकर संघ बहुत चिंतित रहता है जो शिक्षित है। किन्तु निश्क्रिय हों गए संघ उनके लिए भी न कोई अनौपचारिक कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
पूरे भारत में अनुमानित रूप से 60,000 से ज्यादा शाखा लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर "भारतीय स्वयंसेवक संघ" तो कहीं "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के माध्यम से चलता है।
शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता हैं।
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