राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS कि शाखाओं में "आचार पद्धति" (शाखा प्रारंभ एवं शाखा विकिर करने की विधि)
आचार पद्धति (Achar Paddhati)
आचार पद्धति एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसका पालन संघ शाखा (शाखा) की शुरुआत और समापन पर किया जाता है। इस प्रकार कार्यक्रम में आदेश और अनुशासन लाता है और हमारे जीवन में अनुशासन को जन्म देने में मदद करता है। संघ में हमारे गुरु के रूप में प्रस्तुत भगव धवाज, हमारे धर्म और संस्कृति का प्रतीक है जो पवित्रता, ज्ञान और बलिदान का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए भगवान धवाज की उपस्थिति संघ-स्थान (जहां शाखा लगती है) सीखने और साधना के लिए एक पवित्र स्थान बनाती है।
आचार पद्दति (शाखा प्रारंभ एवं शाखा विकिर करने की विधि), Shakha Process
शाखा लगाने की आज्ञाएँ :-
(कुल - 18)
शाखा विकिर की आज्ञाएँ:
(कुल - 15 )
-0-0 (सूचनात्मक सीटी) /प्रारंभ
-000 (सूचनात्मक सीटी) /विकिर
अग्रेसर सम्यक्
आरम्
-00 (सूचनात्मक सीटी) /
संघ दक्ष
संघ सम्यक
अग्रेसर अर्धवृत
संघ आरम्
संघ दक्ष
(ध्वज लगाना)
सीटी अर्थ
-0-0 --
शाखा प्रारंभ
-0 --
कालांश बदल
-- --
स्वयंसेवकों को ध्वजाभिमुख दक्ष करने के लिए
00, 00 --
कार्यक्रम पूर्ववत प्रारंभ करने के लिए
0 --
प्रार्थना के लिए तथा निर्धारित कार्य के लिए
-000 --
शाखा समापन के समय अग्रेसरों को बुलाने के लिए
-00 --
संपत करने के लिए गण शिक्षकों को सूचना
- - -/अधिक आकस्मिक सूचना के लिए
जय घोष
भारत माता की -जय
वन्दे -मातरम
हर-हर -बम-बम
रूद्र देवता -जय-जय काली
जय शिवाजी -जय प्रताप
संघटन में -शक्ति है
संघे शक्ति -कलौयुगे
जयकारा वीर बजरंगी -हर-हर-महादेव
जय शिवाजी -जय भवानी
जय हो -जय हो
कौन जीता कौन जीता -संघ जीता संघ जीता
हिन्दू-हिन्दू -भाई-भाई
हिन्दू वीर कैसा हो -वीर शिवाजी जैसा हो
भारत के शहीदों की -जय
संघ स्वस्थान
संघ दक्ष
आरम्
अग्रेसर ( स्वयं दक्ष कि स्थिति में)
संघ सम्पत्
ध्वज
प्रणाम 1-2-3
संख्या
(संख्या देकर आना)
आरम्
(संख्या देकर जाना)
संघ दक्ष स्वस्थान:-
गणशिक्षक गण लेकर जाएंगे।
एक लम्बी सिटी तीन छोटी सीटी / --000
अग्रसर
अग्रसर सम्यक
आरम्
संघ
दक्ष
संघ सम्यक
आरम्
संघ दक्ष
संख्या ( संख्या लेकर आना )
आरम् ( संख्या देकर जाना )
संघ दक्ष
सिटी का संकेत-प्रार्थना के लिए
प्रार्थना -
भारत माता कि जय
ध्वज प्रणाम 1-2-3
ध्वज (निकालना)
संघ विकिर
उद्घोष:-
प्रार्थना
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
।।
भारत माता की जय ।।
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