राम मंदिर के शिल्पी श्री अशोक जी सिंहल आरएसएस के दिग्गज |
राष्ट्रीय कार्यकर्ता संघ का एक प्रचार। श्रीरामभूमि आन्दोलन के दौरान रविवार हुंकार से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, वे श्री अशोक सिंहल संत भी योद्धा थे और भी, वे स्वयं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक प्रचारक ही मानते थे।
उनका जन्म अश्विन कृष्ण पंचमी (27 सितंबर, 1926) को आगरा (उ.प्र.) में हुआ। सात भाई और बहिन में वे चौथे स्थान पर थे। मूल रूप से यह परिवार ग्राम बिजौली (जिला अलीगढ़, उप्र) का निवासी था। उनके पिता श्री महावीर जी शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे।
घर में संत और वैज्ञानिक के आगमन के कारण बचपन से ही उनमें से एक धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। 1942 में प्रयाग में अहम समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उन्हें कार्यकर्ता बनाया। वे अशोक जी की मां विवती जी को संघ की प्रार्थना सुनेंगे। इससे प्रभावित होकर उन्होंने अशोक जी को शाखा जाने की अनुमति दी।
1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता पाने की खुशी मना रहे थे, पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा? अशोक जी भी किसी में से एक थे। इस माहौल को बदलने के लिए उन्होंने अपना जीवन संघ को समर्पित कर दिया।
बचपन से ही उनके शास्त्रीय गायन में काम कर रहे हैं। संघ के सैकड़ों समझौते की वे बने। वे काशी हिंदू वि.वि. धातु विज्ञान से अभियांता की डिग्री ली गई थी। 1948 में संघ पर बंधन लगा, तो वे सत्याग्रह कर जेल गए। वहां से आकर उन्होंने अंतिम परीक्षा दी और 1950 में प्रमोशनल हो गए।
स्मारक के निकट वे स्मारक, प्रयाग, सहारनपुर और फिर दंतकथाएं हैं। सरचालक श्री गुरुजी से उनका बहुत अन्तर्निहित था। करण में उनके संपर्क वेदों के प्रकांड विद्वान श्री रामचन्द्र तिवारी से हुए। अशोक जी अपने जीवन में इन दोनों का विशेष प्रभाव मानते थे। 1975 की दुर्घटना के दौरान वे इंस्पिरेशन गांधी की तानाशाही के खिलाफ संघर्ष में लोगों को पकड़ते रहे। 1977 में वे दिल्ली प्रांत (वर्तमान दिल्ली हरियाणा) के प्रांत प्रचारक बने।
1981 में डा. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में 'विराट हिन्दू सम्मेलन' हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक जी और संघ की थी। इसके बाद उन्हें 'विश्व हिंदू परिषद' की जिम्मेदारी सौंपी गई। एकात्मता रथ यात्रा, संस्कृति रक्षा निधि, रामजानकी रथयात्रा, रामशिला पूजन, रामज्योति आदि कार्यक्रम से परिषद का नाम सर्वत्र शिला।
अब परिषद के काम में बजरंग दल, परावर्तन, गाय, गंगा, सेवा, संस्कृत, एकल विद्यालय आदि कई नए आयाम जोड़े गए। श्रीरामभूमि जन्म आन्दोलन ने तो देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा ही बदल दी। वे परिषद के 1982 से 86 तक संयुक्त महामंत्री, 1995 तक महामंत्री, 2005 तक कार्य व्यवसाय, 2011 तक अध्यक्ष और फिर संरक्षक रहे।
सन्तों को संगठित करना बहुत कठिन है, पर अशोक जी की हरकत से सभी पंथों के लाखों संत इस आंदोलन से जुड़े। इस दौरान कई बार उनकी अयोध्या पर रोक लग गई, पर वे हर बार प्रशासन को चकमा देकर वहां पहुंच गए। उनके संगठन और नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम था कि युवकों ने छह स्थान, 1992 को राष्ट्रीय कलंक के प्रतीक बाबरी दृश्य को गिरा दिया। कार्य विस्तार के लिए वे सभी प्रमुख देश गए। अगस्त-सितंबर, 2015 में भी वे इंग्लैंड, हॉलैंड और अमेरिका के दौरे पर गए थे।
अशोक जी काफी समय से फेफड़ों के संक्रमण से पीड़ित थे। इसी के चलते 17 चक्कर, 2015 में उनका निधन हो गया। वे प्रतिदिन परिषद कार्यालय में नई शाखाएँ दावेदार थे। आखिरी दिनों में भी उनका संग्रह बहुत अच्छा रहा। वे आशावादी दृष्टिकोण से सदा काम को आगे बढ़ाने वाली बातें करते रहते हैं। उनकी सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब अयोध्या में विश्व भर में हिंदुओं की आकांक्षाओं के अनुरूप श्री रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण पूरा होगा।
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