राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक कुपहल्ली सितारमय्या सुदर्शन।
कुपाहल्ली सीतारमय्या सुदर्शन "सुदर्शनजी"
जीवन परिचय:-
श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (18 जून 1931-15 सितंबर 2012 ) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक थे। मार्च 2009 में श्री मोहन भागवत को छठवाँ सरसंघचालक नियुक्त कर स्वेच्छा से पदमुक्त हो गये। 15 सितम्बर 2012 को अपने जन्मस्थान रायपुर में 81 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया।
बाल्यकाल:-
बाल्यकाल से ही अद्भुत प्रतिभा संपन्न तथा अनेक विषयों का गहन अध्ययन अन्वेषक वृत्ति से करनेवाले, कई भाषाओं के मर्मज्ञ, प्रभावी वक्ता, तथा कई पुस्तकों के रचयिता निवर्तमान सरसंघचालक श्री. सुदर्शन जी का जन्म छत्तीसगढ़ प्रान्त के रायपुर नगर में 18 जून 1931 को हुआ था। आपका पूरा नाम कुप्पहल्ली सीतारामय्या सुदर्शन है। उनका परिवार कर्नाटक प्रान्त का रहने वाला माना जाता है। परन्तु वास्तव में उनके पूर्वज तमिलनाडु के संकेती के रहने वाले है और इसलिए उनकी मातृभाषा तमिल और तेलुगु मिश्रित शकैटी है। सुदर्शन जी के पिताजी श्री. सीतारामय्या मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग में सेवारत होने के कारण मध्य प्रदेश आये थे।
प्रचारक बने:-
तीन भाई व एक बहन में सबसे बड़े सुदर्शन जी ही थे। बचपन से ही उनका सम्बन्ध संघ से हो गया था। परिणाम यह हुआ की अभियांत्रिकी उपाधि प्राप्त करते ही उन्होंने जीवनभर अविवाहित रहते हुए संघ के माध्यम से समाज कार्य करने के लिए प्रचारक जीवन स्वीकार कर लिया और उनकी पहली नियुक्ति छत्तीसगढ़ प्रान्त के रायगढ़ जिला प्रचारक के रूप में हुई। वे रीवा विभाग प्रचारक भी रहे। 1964 में ही उन की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर उन्हें मध्य भारत के प्रान्त प्रचारक की जिम्मेदारी सौंपी गई।
मध्य भारत के प्रान्त प्रचारक रहते हुए ही सन 1959 में उन्हें अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व भी दिया गया। सन 1975 में आपातकाल की घोषणा हुई और पहले ही दिन इंदौर में उन को गिरफ्तार कर लिया गया। पुरे उन्नीस माह उन्होंने कारावास में बिताये। आपातकाल समाप्ति के पश्चात सन 1977 में उन्हें पूर्वांचल [असम, बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य] का क्षेत्र प्रचारक बनाया गया। क्षेत्र प्रचारक के रूप में उन्होंने वहाँ के समाज में सहज रूप से संवाद करने के लिए असमिया, बंगला भाषाओँ पर प्रभुत्व प्राप्त किया तथा पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातियों की अलग अलग भाषाओँ का भी पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। कन्नड़, बंगला, असमिया, हिंदी, इंग्लिश, मराठी, इत्यादि कई भाषाओँ में उन्हें धाराप्रवाह बोलते हुए देखना यह कई लोगों के लिए एक आश्चर्य तथा सुखद अनुभूति का विषय होता था।
सन 1989 में उन्हें अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख व 1990 में सह-सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा गया। अपनी लंबी शारीरिक अस्वस्थता के कारण श्री. राजेंद्र सिंह जी ने 10 मार्च 2000 को अवकाश लेने की घोषणा करते हुए अपने स्थान पर सुदर्शन जी को सरसंघचालक मनोनीत किया। इतनी प्रतिभा और संघ के सर्वोच्च स्थान पर होने के बावजूद उनकी सहजता व सरलता के कारण समाज के विभिन्न स्तरों के लोग तथा स्वयंसेवक उन्हें विना संकोच मिलकर अपनी अपनी बात रखते थे।
उनके 9 वर्ष के कार्यकाल में संघ के 75 वर्ष की पूर्ति के निमित्त राष्ट्र जागरण अभियान, द्वितीय सरसंघचालक श्री. गुरूजी की जन्मशती, आदि कई अभियानों के माध्यम से संघ कार्य का विस्तार हुआ।
ग्रामविकास के कार्य, स्वदेशी तंत्रज्ञान, आदि विषयों के माध्यम से साम्यवाद तथा पाश्चिमात्य जगत के भौतिकवाद से अलग हटकर हिंदू समग्र चिंतनपर आधारीत विकासपथ के अन्वेषण को उन्होंने प्रोत्साहित किया।
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