"भारतीय किसान संघ" संघ परिवार का सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

भारतीय किसान संघ का परिचय, स्थापना और उद्घाटन

भारतीय किसान संघ की स्थापना ४ मार्च १९७९ को राजस्थान के कोटा शहर में की गई| विलक्षण संगठन कुशलता के धनी, महान भारतीय तत्त्वचिंतक, आंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मजदूर नेता श्री. दत्तोपंतजी ठेंगडी ने भारतीय किसानों के उत्थान हेतू इस संगठन को साकार किया| भारतीय किसान संघ की स्थापना करने के पहले उन्होंने सारे देश की यात्रा की और सभी राज्यों में बसे किसानों की स्थिती का अवलोकन किया| उनकी समस्याएँ जान ली| उसी प्रकार हर राज्य में किसानों के लिये काम कर रहे कार्यकर्ताओं से संपर्क किया|

इन्हीं में से उन्होंने ६५० से अधिक प्रतिनिधियों को इकठ्ठा कर उन्हें कोटा शहर में बुलाया| वहॉं ३, ४ और ५ मार्च को एक अधिवेशन आयोजित किया गया| अतिशय गहन चर्चा के बाद किसानों और कृषि-मजदूरों के लिये व्यापक हित में राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करनेवाली एक गैर राजकीय संघटना की जरूरत आंकी गई| किसानों के प्रतिनिधियों के इस भावना को मूर्त रूप देते हुए दत्तोपंतजी ठेंगडी ने ४ मार्च १९७९ को भारतीय किसान संघ के स्थापना की घोषणा की|

    लक्ष्य और उद्देश:-

    १) किसानों को उन्ही के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक प्रगति के लिये संगठित करना| कृषी के साथ विविध गृह उद्योगों द्वारा आय के पूरक स्रोत उपलब्ध कर उन्नत जीवनमान की ओर उन्हें अग्रेसर करना|

    २) कृषी तंत्रज्ञान में नये खोजों के कारण होने वाले परिवर्तनों की, सुधारों की समय समय पर जानकारी देकर किसानों को उनका स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करना|

    ३) परंपरागत भारतीय कृषी पद्धती का महत्त्व जताकर उसका स्वीकार और संवर्धन करने के लिये और उसी प्रकार पर्यावरण की सुरक्षा ध्यान में रखते हुए भूमी की उपजक्षमता, पानी की उपलब्धता, बीज, पशुधन, पौधे आदि के संबंध में समय समय पर आनेवाले आधुनिक बदलाओं का स्वीकार करने के लिये उन्हे प्रोत्साहन देना|

    ४) शतकों से भारत में प्रचलित परंपरागत कृषी पद्धती की जानकारी, उसका उपयोग, उसमें किये गए प्रयोग, परिवर्तन, संशोधन आदि जानकारी इकठ्ठा करना और अन्य किसानों को यह जानकारी प्राप्त हो इसके लिये उसे प्रकाशित करना, और साथ ही पेटंट लिये जाने के प्रयासों से उसका बचाव करना|

    ५) किसानों को आनेवाली कठनाईयॉं और उनकी समस्याओं पर चर्चा, संगोष्ठी, आयोजित करना, उसी सिलसिले में विविध अभ्यास गुटों का निर्माण करना, किसानों की अभ्यास यात्राएँ, उनके उत्पादों के प्रदर्शन आयोजित करना| इस प्रकार के आयोजनों के लिये प्रोत्साहन देना और मदद भी करना|

    ६) कृषी और किसानों के लिये राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर समान उद्देश और समान कार्यक्रम के तहत काम करने वाली विविध संस्थाओं को इकठ्ठा लाना और उन्हे उनके कार्य के लिए सहायता करना|

    ७) विविध मजदूर संगठन, सहकारी और शैक्षणिक संस्थाएँ, उसी प्रकार आर्थिक, सामाजिक औेर सांस्कृतिक संगठनाओं से भी मदद लेना|

    ८) भारतीय गोवंश की विविध प्रजातियों का रक्षण और संवर्धन करना| उसी प्रकार कृषी कार्य में सहाय्यभूत होने वाले अन्य जीवों का भी रक्षण और संवर्धन करना|

    ९) किसान और कृषी मजदूरों में और उसी प्रकार गांव के अन्य कारीगरों में सहायता और सौहार्द्र बढाना और उस जरिये गांव में सकारात्मक और खुशहाल वातावरण निर्माण करना|

    १०) अधोरेखित और उसी प्रकार किसानों के हित में अन्य विविध उद्दिष्टों के पूर्ती के लिये विविध उपक्रमों का आयोजन करना|

    ११) भूमि, जल और ऊर्जा स्रोतों का व्यवस्थापन तथा पर्यावरण संरक्षण के संबंध में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ हॉंथ बटाकर किसानों के लिए विविध प्रशिक्षण शिबिरों का आयोजन करना|

    १२) नये, विकसित जलसिंचन तंत्र तथा पानी की बचत करनेवाले उपकरणों को विकसित करना और किसानों के हित में उनका प्रचार करना|

    भारतीय किसान संघ का विस्तार:-

    स्थापना के बाद श्री. दत्तोपंतजी ठेंगडी का कुशल नेतृत्व और निःस्वार्थ कार्यकर्ताओं के योगदान से भारतीय किसान संघ का पूरे देश में तेजी से विस्तार होने लगा| अलग अलग राज्यों के किसानों को भारतीय किसान संघ की भूमिका और कार्य भाने लगा और वे उसके साथ जुडने लगे| और अतिशय अल्पकाल में देश के सभी राज्यों में भारतीय किसान संघ की शाखाएँ खुल चुकी थी |

    उस समय तक ऐसे कई राज्य थे जहॉं के हर जिले में, तहसिलों में, छोटे छोटे गॉंवों में भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ता सक्रीय हो चुके थे| भारतीय किसान संघ की ग्राम समितियॉं स्थापन हो चुकी थीं और उनके माध्यम से किसानों के कल्याण का कार्य शुरू हो गया था |

    संगठनात्मक कार्य:--

    भारतीय किसान संघ ने जहॉं एकतरम देश के किसानों की सृजनशक्ति बढाई, उन्हें उनका हित, उनकी शक्ती का एहसास दिलाकर उनमें क्रांति के दीप जलाए, वहीं दुसरी ओर उनमें राष्ट्रप्रेम जगा कर देश के लिये कुछ करने की जिम्मेवारी का एहसास भी दिलाया| किसानों के आर्थिक स्थिती में सुधार और निश्‍चितता लाने के लिए भारतीय किसान संघ ने कई ठोस कदम उठाए| किसानों को उनके नुकसान का प्रमाण कम करने के लिये कृषि से संबंधित विविध तकनिकों का प्रशिक्षण देना, ग्राहक संरक्षण कानून अंतर्गत किसानों को उनके अधिकारों की जानकारी देना, इस प्रकार के कई उपक्रम भारतीय किसान संघ ने कार्यान्वित किये और आज भी वह काम हो रहा है| इसी के साथ साथ समान विचार, सामूहिक जिम्मेवारी और सहकार्य, परस्पर विश्‍वास के आधार पर सुखी और समृद्ध गांव विकसित करने के लिए भी भारतीय किसान संघ का कार्य चलता रहा| सही मायने में आत्मनिर्भर और समृद्ध किसान तथा खुशहाल गॉंव, यही भारतीय संघ की मूल संकल्पना और तत्त्वज्ञान भी है| किसानों को देशपर होने वाले बाह्य आक्रमण और देशांतर्गत उपद्रवकारियों के उत्पातों से अवगत कराकर उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का एहसास दिलाया जाता है |

    संगठन का स्वरूप:-

    भारतीय किसान संघ एक पंजीकृत संगठन है| देश का कोई भी किसान इसका सदस्य बन सकता है| यह सदस्यता तीन वर्ष तक होती है, उसके बाद ङ्गिर से सदस्यता प्राप्त करनी होती है| भारतीय किसान संघ के ग्राम स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक सभी कार्यकारिणीयों का हर तीन वर्ष बाद निर्वाचन होता है|

    भारतीय किसान संघ ने कृषि की परिभाषा बहुत ही व्यापक स्वरूप में की है| प्रत्यक्ष खेती, दुग्ध व्यवसाय, ङ्गलोत्पादन, रेशम उत्पादन, मत्स्य व्यवसाय, वनीकरण और इन सारे प्रकारों से संलग्न निर्माण, प्रक्रिया, व्यापार उद्योग में कार्यरत सभी कर्मचारी और कृषि-मजदूर किसी जात, धर्म, भाषा, प्रदेश आदि किसी भी प्रकार का भेद न मानते हुए भारतीय किसान संघ के सदस्य बन सकते हैं|

    भारतीय किसान संघ की ग्राम समिती, विकास विभाग समिती, जिल्हा समिती, विभागीय समिती, प्रांत समिती, राज्य समिती, प्रदेश समिती और राष्ट्रीय समिती होती है, जिसके पदाधिकारियों के चयन अतिशय सौहार्द्रपूर्ण और पारिवारिक वातावरण में किया जाता है| यह समितियॉं सारे वर्ष भर विविध उपक्रम और कार्यक्रमों का आयोजन करती है| इनमें मुख्यतः सदस्यता अभियान, विविध कार्य समितियों का निर्माण, मासिक सभाएँ, रिङ्ग्रेशर कॅम्प, विविध प्रशिक्षण शिबिर, सभाएँ, गॉंव का एकत्रीकरण, सम्मेलन, यात्राएँ, कृषि मेला, पशु मेला, किसान दिन, स्थापना दिवस, आदर्श ग्राम कल्पना, आनंद मेला (सोशल ङ्गीस्ट), वन-वास्तव्य, गो-पूजन, भारतमाता पूजन, पशुओं की स्पर्धा (शंकरपट आदी), ङ्गल, सब्जियॉं, ङ्गूल प्रदर्शन और स्पर्धा, विविध आंदोलन, घेराव, धरना, प्रदर्शन आदि का आयोजन किया जाता है|

    भारतीय किसान संघ किसानों के उत्थान के लिए कार्य करनेवाला संगठन है| भारत में किसानों की ओर सरकार का कामी दुर्लक्ष होता रहा है| देश के कई भागों में अवर्षण या अतिवृष्टी की समस्या बारबार निर्माण होती रहती है, जिससे किसानों का जीवन पूर्णतः बिखर जाता है| ऐसे में सरकारी अनास्था से किसानों की स्थिती और बिगड जाती है| हालाकि कृषि यह भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है; परंतु देश के अर्थसंकल्प में यह बात प्रतिबिंबित होती दिखाई नहीं देती| सरकार कृषि उत्पादों के लिए जो समर्थनमूल्य घोषित करती है, उससे भी किसानों का कभी लाभ होता दिखाई नहीं देता, यह एक विडंबना ही तो है|

    असंगठित होने के कारण किसानों का हरदम शोषण ही होता रहा है| और यही कारण है कि किसान उनका गॉंव और खेती छोडकर शहरों की ओर जाने लगा है| इस कारण शहरों में झुग्गी-झोपडियॉं, जनसंख्या में वृद्धि आदि नागरी समस्याएँ बढने लगी| इस प्रकार की सारी समस्याओं को दूर करने का भारतीय किसान संघ का प्रयास है|

    भारतीय किसान संघ अन्य किसान हितैषी संगठनाओं के साथ भाईचारे के संबंध रखता है| किसान-हित यही भारतीय किसान संघ का मुख्य उद्देश्य है और इसके लिये किसी भी संगठन के साथ मिलकर काम करने की उसकी तैयारी है|

    भारतीय किसान संघ किसानों के सर्वांगीण उत्थान के लिए कटिबद्ध है| इसी लिए किसानों के अधिकारों के लिए आंदोलन करने के साथ साथ वह किसानों को शिक्षित करने के लिए भी प्रयत्नरत है| कृषि उत्पादनों के भाव निश्‍चित करने के लिए आग्रह करते हुए किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास भी भारतीय किसान संघ द्वारा शुरू है| हरवक्त सिर्म सरकारी मदतपर निर्भर रहना या उसकी अभिलाषा रखना उचित और व्यवहार्य नहीं है, यह बात भी उनकी समझ में लाने का काम भारतीय किसान संघ कर रहा है| अपने कर्ज का भार कम करने के लिए किसानों को अतिरिक्त और मिजूल लागत खर्चा कम करने के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है| किसानों की सांस्कृतिक परंपरांओं को भी बढावा दिया जा रहा है| उनका जतन और संवर्धन करने का भी कार्य शुरू है| गलत आदतें छोडकर आर्थिक बचत करने का महत्त्व किसानों को समझाया जा रहा है| राष्ट्रीय हित की बातें भी उन्हें समझायी जाती है| यही कारण है, कि भारतीय किसान संघ के आंदोलन अतिशय शांतिपूर्ण होते है| सरकारी यंत्रणा को भी इन आंदोलनकारियों से समझौता करने में आसानी जाती है|

    किसानों के लिए विविध विषयों पर प्रशिक्षण शिबिरों का आयोजन यह भारतीय किसान संघ के कार्य की सबसे बडी विशेषता है| इन शिबिरों में किसानों को अधिक उत्पादनवाली प्रजातियोंका उपयोग, पशुओं का संकर आदि विषयों का समावेश होता है| इन शिबिरों में जो भूधारक किसान सहभागी होते हैं उन्हें कृषि-मजदूरों को उचित दाम देने के लिए आवाहन किया जाता है| उसी प्रकार उन्हें खेती में यंत्र-उपकरणों के बजाय पशुधन और परिवारजनों की अधिकतम सहायता लेने का महत्त्व समझाया जाता है| यंत्रों का उपयोग टालने से लागत मूल्य कम होने में सहायता मिलती है और उसी प्रकार परिवारजनों के साथ काम करने से उनमें संबंध अधिक दृढ होते दिखाई देते हैं|

    कृषि के लिए गाय और गो-वंश का उपयोग भारत में प्राचीन काल से होता आया है; अपितु उसका कामी महत्त्व भी रहा है| इसिलिए गाय की गोमाता कहकर पूजा भी की जाती है| भारतीय किसान संघ ने इस परंपरा को संजोए रखा है| उसी प्रकार कृषी क्षेत्र में काम करनेवाले सभी लोगों में एक-परिवार की संकल्पना दृढ करने का भी प्रयास भारतीय किसान संघ शुरू संही करता आ रहा है| एक- परिवार की इस संकल्पना से गॉंवों में आपसी सद्भाव निर्माण होकर झगडे और भेदभाव कम होने में मदद मिली है|

    इससे से भी गॉंव के किसानों का जीवनस्तर बढने में सहायता मिलती है| भूधारक और कृषी मजदूर इनमें भेद दूर होकर उनमें परस्पर सहायता, भाईचारा निर्माण होते देखा गया है| इससे वर्गभेद, गरीब-धनिक, मालक- मजदूर भेद कम होने में सहायता मिलती है| इसी भावना से भारतीय किसान संघ ने ‘कृषिमित् कृषस्वःम यह ब्रीद बनाया है| ‘सिर्म खेती ही करोम यह संदेश इसमें से दिया जाता है| अपने कांधे पे हल और हांथ में मुसल धरे भगवान बलराम का चित्र भारतीय किसान संघ का लोगो है| उनका जन्मदिन भारतीय किसान संघ द्वारा ‘किसान दिनम के रूप में मनाया जाता है | इससे राष्ट्रीयता और आध्यात्मिकता का एक नया आयाम भारतीय किसान संघ ने किसान आंदोलन को प्रदान किया है |

    हमारा परिचय:-

    १) हमारा संगठन- भारतीय किसान संघ|

    २) हमारा ध्वज- अखंड भारत के मानचित्र पर हलधर की निशानी से युक्त भगवा ध्वज|

    ३) हमारा ब्रीद- ‘कृषि मित् कृषस्व|’ (सिर्फ खेती ही करो)|

    ४) हमारे संगठन का आधार- पारिवारिक भावना|

    ५) हमारा स्वप्न- हर एक किसान हमारा नेता|

    ६) हमारे कार्य का संप्रेरक- किसान का उत्थान ही राष्ट्र का उत्थान|

    ७) हमारी मान्यता- किसानों की एकता, राष्ट्र की अखंडता|

    ८) हम मानते- सामूहिक नेतृत्व|

    ९) हमारी विशेषता- हमारा संघठन नेता आधारित नही; कार्यकर्ता आधारित|

    १०) हमारी नीति- हमारा संगठन गैर-राजनीतिक है|

    ११) हमारी वचनबद्धता- देश के हम भंडार भरेंगे|

    १२) हमारा अधिकार-लागत मूल्य आधारित कीमत लेंगे|

    १३) हमारा आदर्श- भगवान बलराम|

    १४) हमारी निष्ठा- पूरा गॉंव एक परिवार है| पूरा राष्ट्र एक परिवार है| प्रत्येक किसान भाई-भाई है|

    लक्ष्य और उद्देश:-

    भारतीय किसान संघ के लक्ष्य और उद्देश्य

    भारत एक कृषिप्रधान देश है| किसान और कृषि एवं कृषिपर आधारित उद्योग अपने देश की अर्थनीति का मुख्य आधार है| किसान और कृषि के बगैर भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती| परंतु जहॉं एकतरफ पूरे विश्‍व में कृषि क्षेत्र का चौतरफा विकास हो रहा है, वहीं भारत में किसान असहाय बना हुआ है| अपनी लूट की जा रही है, ऐसी भावना यहॉं के किसानों के मन में निर्माण हो रही है| इस विषमता को दूर करने के लिए देश में कई संस्थाएँ, संघटन प्रयत्नरत है, पर उनमें कई तो किसी व्यक्ति/ व्यक्तिओं या किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी के प्रचारक के रूप में कार्य कर रहीं हैं| इस प्रकार की संस्थाएँ या संगठन उनके स्वार्थ के लिए या व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा की पूर्ती के लिए किसानों का उपयोग करते हैं, यह विडंबना है| यह देखते हुए किसानों में देश के प्रति उनके दायित्व के साथ साथ उनके अधिकारों के लिए जागृती लाने के लिए एक अराजनैतिक संगठन की जरूरत महसूस होने लगी थी| यही बात जान कर देश के एक ज्येष्ठ तत्त्वचिंतक, मजदूर नेता श्री. दत्तोपंतजी ठेंगडी ने भारतीय किसान संघ इस अराजनैतिक व राष्ट्रवादी संगठन की स्थापना की |

    भारतीय किसान संघ का परिचय:-

    श्री. दत्तोपंतजी ठेंगडी और श्री. भाऊसाहेब भुस्कुटेजी की मार्गदर्शन में सर्वप्रथम १९७८ में मध्यप्रदेश में भारतीय किसान संघ की स्थापना हुई| नियमानुसार पंजीकृत होने बाद इस संगठन नें पूरे जोश के साथ किसानों की समस्याओ पर ध्यान केंद्रित कर कार्य करना आरंभ किया| पंजीकरण के बाद इस संगठन की पहिली सभा होशंगाबाद जिले में कसेरा धर्मशाला में संपन्न हुई|

    वहॉं किसानों की ओर से मिला प्रतिसाद देख और देशभर के किसानों के प्रश्‍न जानते हुए ठेंगडीजी और भुस्कुटेजी ने संपूर्ण देश की यात्रा की और सभी राज्यों के किसानों की समस्याएँ जान ली| उन्होंने पूरे देश में से किसानों के ६५० से अधिक प्रतिनिधियों का चयन किया और राजस्थान के कोटा शहर में ३,४ और ५ मार्च को एक अधिवेशन आयोजित कर ४ मार्च १९७९ में भारतीय किसान संघ के स्थापना की घोषणा की| ‘किसानों की, किसानों के लिये, किसानों द्वारा चलाये जानेवाली अराजनैतिक संघटना’ के रूप में भारतीय किसान संघ कार्य करेगा, ऐसा श्री. दत्तोपंत ठेंगडीजी ने घोषित किया|

    और उसी स्वरूप में संघटनात्मक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक भूमिका निभाते हुए आज भारतीय किसान संघ देश के किसानों तथा कृषि मजदूरों की आवाज उठानेवाला और साथ ही ग्राम विकास की प्रक्रिया में सहयोग देनेवाला किसानों का एक सशक्त संघठनबन चुका है|

    आंदोलनात्मक आधार:-

    लोकतंत्र में किसानों का सम्मान कायम रखते हुए, व्यवस्था के खिलाफ सृजनात्मक संघर्ष के लिए, अहिंसात्मक आंदोलन और प्रदर्शन एक प्रभावी माध्यम है| इसी विचार से भारतीय किसान संघ ने संविधान की प्रतिष्ठा और लोकतंत्र की परंपरा को संजोते हुए किसानों की समस्याओं पर काफी आंदोलन किये; कुछ आंदोलन आज भी शुरू हैं|

    बहुतांश आंदोलनों में भारतीय किसान संघ को सफलता भी हासिल हुई है| कई बार ऐसा भी हुआ है कि, भारतीय किसान संघ ने किसानों के हित में अपनी भूमिका जाहीर की और उसे सार विश्‍व से स्वीकृती मिली है; उसकी सराहना हुई है|

    ध्वज:-

    भारतीय किसान संघ का ध्वज गेरुए रंग का है| गेरुआ रंग देश का इतिहास, परंपरा और त्यागशील जीवन पद्धति का प्रतीक है| सुबह आकाश में सूरज उदित होता है, उस उषःकाल के समय का रंग गेरुआ होता है| सूरज नियमितता का और उषःकाल उज्ज्वल भविष्य के लिए नयी सुबह का प्रतीक माना जाता है| यह रंग अग्नि का भी होता है, जो शुद्धता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है| साधु-संत-योगी भी गेरुए रंगके वस्त्र पहनते है, जो ज्ञान और त्याग का प्रतीक है| इसीलिए गेरुआ रंग भारत की शानदार प्राचीन संस्कृती का भी प्रतीक माना जाता है| ध्वज मंं समानता हो इसलिए इसका आकार आयताकृती और लंबाई-चौडाई का अनुपात ३:२ रखा गया है| इस ध्वज के मध्य भाग में भारतीय किसान संघ का चिन्ह अंकित किया गया है।

    ध्येय-वाक्य:-

    भारतीय किसान संघ का ब्रीद वाक्य है- कृषि मित कृषस्वः| इसका अर्थ होता है- खेतीही करो| भारत के चार वेदों में से प्रथम वेद ऋग्वेद के अक्षदेवन सूक्त में दिए गये एक मंत्र में से ली गयी यह पंक्ति है| इस मंत्र में मनुष्य को- जुवॉं मत खेलो, खेती करो, खेती से ही पैसा कमा कर उससे सम्मानपूर्वक जीवन जिओ-ऐसा बताया गया है|

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