बंगलादेश और पाकिस्तान के उत्पीड़ित हिन्दुओं की समस्याओं का निराकरण करें
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2013:
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त करती है कि पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अन्तहीन अत्याचारों के परिणामस्वरूप वे लगातार बड़ी संख्या में शरणार्थी बनकर भारत में आ रहे हैं। यह बहुत ही लज्जा एवम् दुःख का विषय है कि इन असहाय हिन्दुओं को अपने अपने मूल स्थान और भारत दोनों में ही अत्यंत दयनीय जीवन बिताने को विवश होना पड़ रहा है।
अ. भा. प्र. सभा बंगलादेश के बौद्धों सहित समस्त हिन्दुओं एवं उनके पूजास्थलों पर वहाँ की हिंदु विरोधी तथा भारत विरोधी कुख्यात जमाते इस्लामी सहित विभिन्न कट्टरपंथी संगठनों द्वारा हाल ही में किये गए हमलों की तीव्र निंदा करती है। यह घटनाक्रम बंगलादेश में पिछले कई दशकों से लगातार जारी है। वहाँ के हिंदु और अन्य अल्पसंख्यक उनकी कुछ भी गलती न होते हुए भी इस्लामिक आक्रामकता की आग में झुलस रहे हैं। इस उत्पीडन से असहाय होकर हजारों लोग अपनी जान और इज्ज़त बचाने के लिए पलायन कर भारत में आने के लिए बाध्य हो रहे हैं। प. बंगाल और आसाम में ऐसे हजारों बंगलादेशी हिंदु तथा चकमा कई दशकों से शरणार्थी बनकर रह रहे हैं और जब भी बंगलादेश में हिंसाचार होता है तो इनमें और नए लोग आकर जुड़ते रहे हैं।
अ. भा. प्र. सभा पाकिस्तान के हिन्दुओं की दुर्दशा पर भी राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करना चाहती है। सभी उपलब्ध सूचनाओं से यही प्रकट हो रहा हैकि पाकिस्तान के हिंदु सुरक्षा, सम्मान और मानवाधिकारों से वंचित निम्नस्तर का जीवन बिता रहे हैं। सिक्खों सहित समस्त हिन्दुओं पर नित्य हमले एक आम बात है। बलपूर्वक मतान्तरण, अपहरण, बलात्कार, जबरन विवाह, हत्या और धर्मस्थलों को विनष्ट करना वहाँ के हिन्दुओं के प्रतिदिन के उत्पीड़ित जीवनका भाग हो गये हैं। पाकिस्तान की कोई भी संवैधानिक संस्था उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आती है। परिणामस्वरूप पाकिस्तान के हिंदु भी पलायन कर भारत में शरण मांगने को विवश हो रहे हैं।
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अ. भा. प्र. सभा भारत के राजनैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक नेतृत्व तथा केन्द्रीय सरकार को यह स्मरण दिलाना चाहती है कि ये असहाय हिंदु अपने स्वयंके किसी कृत्य के कारण इस इस्लामी उत्पीड़न का शिकार नहीं हुए हैं। १९४७ में हुए मातृभूमि के दुःखद और विवेकहीन विभाजन के परिणामस्वरूप ही वे इस स्थिति में आये हैं। पाकिस्तान और बंगलादेश के इन निरपराध हिन्दुओं पर राजनैतिक नेतृत्व द्वारा विभाजन थोपा गया था। एक ही रात्रि में अचानक उनके लिए उनकी अपनी ही मातृभूमि पराई हो गयी। वास्तव में यह एक विडम्बना ही है कि ये अभागे हिंदु अपने पूर्व के नेताओं की जोड़ तोड़ की राजनीति की गलतियों की कीमत अपने जीवन से चुका रहे हैं।
अ. भा. प्र. सभा भारत सरकार को आवाहन करती है कि पाकिस्तान और बंगलादेशके हिन्दुओं की स्थिति और वहाँ से आये हुए शरणार्थियों के पूरे विषय पर पुनर्विचार करे। सरकार यह कह कर बच नहीं सकती कि यह उन देशों का आन्तरिक विषय है। १९५० के नेहरु-लियाकत समझौते में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा और नागरिकता के अधिकार प्रदान किये जायेंगे। भारत में हर संवैधानिक प्रावधान का उपयोग तथाकथित अल्पसंख्यकों को न केवल सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया अपितु उनको तुष्टिकरण की सीमा तक जानेवाले विशेष प्रावधान भी दिए गए। वे आज भारत में जनसांख्यिकी, आर्थिक, शैक्षिक, और सामाजिक सभी दृष्टि से सुस्थापित हैं।
इसके विपरीत, पाकिस्तान और बंगलादेश के हिंदु लगातार उत्पीडन के परिणामस्वरूप घटती जनसंख्या, असीम गरीबी, मानवाधिकारों के हनन और विस्थापनकी समस्याओं से ग्रस्त है। पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान में विभाजन के समय हिन्दुओं की जनसंख्या क्रमश: २८% और ११% थी तथा खंडित भारत में ८% मुस्लिम थे। आज जब भारत की मुस्लिम आबादी १४% तक बढ़ गयी है वहीं बंगलादेश में हिंदु घटकर १०% से कम रह गए है और पाकिस्तान में वे २% प्रतिशत से भी कमहै।
अ. भा. प्र. सभा का यह सुनिश्चित मत है कि नेहरू-लियाकत समझौते के उल्लंघन के लिए पाकिस्तान और बंगलादेश की सरकारों को चुनौती देना भारतसरकार का दायित्व है। लाखों हिन्दुओं के विलुप्त होने को केवल उन देशों की संप्रभुता का विषय मानकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता। इन दोनों देशों को, भारत में लगातार आ रहे हिंदु शरणार्थियों के बारे में कटघरे में खड़ा करनाचाहिए। भारत के तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय से एक भी व्यक्ति इन देशों में शरणार्थी बन कर नहीं गया है जबकि लाखों लोग वहाँ से यहाँ आए हैं और आ रहे हैं।
इस हृदयविदारक दृश्य को देखते हुए अ. भा. प्र. सभा भारत सरकार से यह अनुरोध करती है कि इन दोनों देशों में रहनेवाले हिन्दुओं के प्रश्न पर नए दृष्टिकोण से देखे, क्योंकि उनकी स्थिति अन्य देशों में रहनेवाले हिन्दुओंसे पूर्णतया अलग है।
अ. भा. प्र. सभा भारत सरकार से आग्रह करती है कि:
बंगलादेश और पाकिस्तान की सरकारों पर वहाँ के हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाए।
राष्ट्रीय शरणार्थी एवं पुनर्वास नीति बनाकर इन दोनों देशों से आनेवालेहिन्दुओं के सम्मानजनक जीवन यापन की व्यवस्था भारत में तब तक करें जब तककि उनकी सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी की स्थिति नहीं बनती।
बंगलादेश और पाकिस्तान से विस्थापित होनेवाले हिन्दुओं के लिए दोनों देशों से उचित क्षतिपूर्ति की मांग करे।
संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थी तथा मानवाधिकार से सम्बंधित संस्थाओं [UNHCR, UNHRC] से यह मांग करे कि हिन्दुओं व अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षाव सम्मान की रक्षा के लिए वे अपनी भूमिका का निर्वाह करे।
अ. भा. प्र. सभा यह कहने को बाध्य है कि हमारी सरकार का इन लोगों के प्रति उदासीन रवैया केवल इसलिए ही है क्योंकि वे हिंदु हैं। सभी देशवासियोंको सरकार के इस संवेदनहीन और गैरजिम्मेदार व्यवहार के विरुद्ध खुलकर आगे आना चाहिए। पाकिस्तान और बंगलादेश के वहाँ रहनेवाले तथा शरणार्थी बनकर भारतमें आए हुए हिन्दुओं की सुरक्षा एवं जीवन यापन के अधिकार की रक्षा के लिए समूचे देश को उनके साथ खड़े रहने की आवश्यकता है।
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल 2012:
असम की हिंसा तथा बंगलादेशी घुसपैठियों की राष्ट्रव्यापी चुनौती
जुलाई 2012 में असम के कोकराझार, चिरांग व धुबड़ी जिलों में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण उत्पन्न अशांति और उसके पश्चात देश के विभिन्न नगरों में हुए हिंसक प्रदर्शनों तथा देश के विभिन्न भागों में शांति के साथ रह रहे उत्तर-पूर्वांचल के लोगों के मध्य षड़यंत्रपूर्वक भय और आतंक फैलाकर उन्हें वहां से पलायन के लिए विवश करने जैसे सभी कृत्यों की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल घोर निंदा करता है तथा इन सभी घटनाओं को देश के लिए एक गंभीर चुनौती मानता है | असम व निकटवर्ती क्षेत्रों में अनवरत बढ़ रही घुसपैठ से एक गंभीर संकट की स्थिति उत्पन्न होगयी है |
सन 2003 में केंद्र एवं प्रदेश सरकारों के साथ हुए एक समझौते के परिणामस्वरूप बने बोडोलैंड टेरीटोरिअल एरियाडिस्ट्रिक्ट ( BTAD ) के चारों जिलों में भी, बड़ी संख्या में घुसपैठिये बस गये हैं | इन घुसपैठियों के कारण वहाँ के सामाजिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक ,आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक वातावरण पर दूरगामी दुष्प्रभाव हुए हैं | बोडोलैंड टेरीटोरिअल कौंसिल ( BTC ) में आरक्षण की मांग करने वाले मुसलमानों ने 29 मई 2012 को बंद का आवाहन किया| देश के कुछ राजनीतिक दलोंद्वारा दिये गये मुस्लिम आरक्षण के असंवैधानिक आश्वासनों ने आग में घी का काम किया | 20 जुलाई को चार बोडो युवकों की मुसलमानों द्वारा की गयी निर्मम हत्या ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया | इसके बाद भड़की हिंसक घटनाओं में सरकारी आकड़ों के अनुसार 90 लोग मारे गये और चार लाख से अधिक लोग विस्थापित होकर राहत शिविरों में आ गये | इन राहत शिविरों में भी बड़ी संख्या में रह रहे घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें निष्कासित करना आवश्यक है | इस दृष्टि से असम में, समाज के अनेक जनसंगठनों द्वारा एक मंच पर आकर, घुसपैठियों का वहां पुनर्वास नहीं होने देने का सामूहिक संकल्प भी सराहनीय है |
वस्तुतः, निहित स्वार्थ वाले राजनीतिक दलों व मुस्लिम घुसपैठियों के प्रति सांप्रदायिक सहानुभूति रखनेवाले स्थानीय निवासियों के अवैध सहयोग व समर्थन के कारण ये घुसपैठिये वहां जमीन, जंगल, रोजगार के अवसरों व अन्य संसाधनों को हथियाने से लेकर स्थानीय राजनीति में अपना वर्चस्व तक बनाने में सफल हो रहे हैं | इन घुसपैठियों को सहयोग व समर्थन दे रहे ऐसे तत्वों के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई आवश्यक है |
अ.भा. कार्यकारी मंडल असम की घटनाओं को विशेषकर एवं बंगलादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को एक मुस्लिम मुद्दे के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयासों की निंदा करता है | कुछ नेताओं द्वारा मुसलमानों में कट्टरवाद की नई लहर उभरने जैसे संसद के अन्दर व बाहर दिए गए उत्तेजक वक्तव्यों और केवल मुस्लिम समाज के सांसदों का हिंसाग्रस्तक्षेत्र के कुछ ही चुने हुए शिविरों के दौरों द्वारा देश में मूलतः, एक स्थानीय बनाम विदेशियों के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने के प्रयासों की सभी राष्ट्रीय दृष्टि रखनेवाले वर्गों द्वारा निंदा करनी चाहिये |
असम की घटनाओं को लेकर मुंबई , प्रयाग, लखनऊ, कानपुर, बरेली, अहमदाबाद, जोधपुर आदि अनेक स्थानों पर मुस्लिम कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हुए पूर्वनियोजित उग्र और हिंसक प्रदर्शनों ने देश की जनता को चिंता में डाल दिया है | मुंबई में हिंसक प्रदर्शनकारियों ने न केवल प्रसार माध्यमों से जुड़े लोगों तथा सामान्य नागरिकों के ऊपर आक्रमण करने, पुलिस कर्मियों के शस्त्र लूटने तथा राष्ट्रीय स्मारकों को अपमानित कर उन्हें तोड़ डालने जैसे दुस्साहस किये, अपितु महिला पुलिस कर्मियों को भी निशाना बनाकर अपमान व दुर्व्यवहार किया |
यह और भी गंभीर विषय है कि, प्रशासन न तो इन घटनाओं का पूर्व आकलन कर सका और न ही दोषी तत्वों को ढूंढकर उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति दिखा रहा है |
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन सभी घटनाओं की घोर भर्त्सना करता है |
इसी कड़ी में राष्ट्रद्रोही तत्वों ने देशके विभिन्न स्थानों पर रह रहे उत्तर-पूर्वांचल के लोगों को प्रत्यक्ष व संचार माध्यमों द्वारा धमकाना भी शुरू कर दिया कि रमजान के बाद उनसे बदला लिया जायेगा | परिणामस्वरूप पुणे, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई आदि स्थानोंसे बड़ी संख्या में लोग अपने घरों की ओर पलायन करने को विवश हो गये | इस संकट के समय, राष्ट्रीय एकात्मता की उत्कृष्ट भावना तथा अपने दायित्व कापरिचय देते हुए स्थान-स्थान पर हजारों देशभक्त खड़े हो गये, जिन्होंने भय सेआतंकित लोगों को सभी प्रकार की सुरक्षा एवं सहायता देने के साथ-साथ उन्हें अपना स्थान न छोड़ने का आग्रह किया |
इसी कारण भय की यह लहर देश के अन्य स्थानों पर बढ़ने से रुक गयी तथा उत्तर पूर्वांचल के लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा | अ. भा. कार्यकारी मंडल इन सभी देशवासियों की सराहना करता है और साथ ही उत्तर-पूर्वांचल के लोगों को यह विश्वास दिलाता है कि देश की जनता उनके साथ खड़ी है | अ.भा. का. मंडल सरकार से यह भी मांग करता है कि भय फैलाने वाले राष्ट्रविरोधी तत्वों को ढूंढ कर उन्हें कठोरतापूर्वक दण्डित करे |
घुसपैठ का पोषण करनेवाले आइ.एम्.ड़ी.टी. ( Illegal Migrant Determination by Tribunals ) एक्ट 1983 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित करने व दिल्ली, गुवाहाटी उच्च न्यायालयों द्वारा घुसपैठियों को बाहर करने के निर्देश तथा जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा बार-बार समस्या की गंभीरता के प्रति ध्यान आकर्षित करने के बाद भी केंद्र तथा अनेक प्रदेश सरकारें वोट बैंक की राजनीति के चलते घुसपैठियों पर दृढ़ कार्रवाई करने के बजाय उन्हें बढ़ावा ही दे रही हैं | इन बंगलादेशी घुसपैठियों ने आज सारे देश में अपना विस्तार कर लिया है | ये घुसपैठिये जनसंख्या के संतुलन को बिगाड़ने के साथ-साथ अनेक प्रकार की आपत्तिजनक एवं अवैध गतिविधियों में लिप्त होकर देश की सुरक्षा के लिए एक गंभीर संकट बन गये हैं |
नकली भारतीय मुद्रा का प्रसार, अवैध शस्त्रों का व्यापार, ड्रग्स तथा गौ धन की तस्करी और अन्यान्य आपराधिक कार्यों में लिप्त ये लोग आइ.एस.आइ. (ISI) की गतिविधियों के भी साधन बन गये हैं |
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल केंद्र सरकार तथा सभी राज्य सरकारों से यह मांग करता है कि, विदेशी नागरिक अधिनियम 1946 ( Foreigners Act 1946 ) के अनुसार, तथा सर्वोच्च न्यायालय सहित विविध न्यायालयों के आदेशों के प्रकाश में बंगलादेशी घुसपैठियों की सम्पूर्ण देशमें सूक्ष्मता से पहचान कर इन्हें नागरिकों को देय सुविधाओं से वंचित करते हुए देश से तत्काल निष्कासित करें | जिन घुसपैठियों ने अपने नामों को मतदाता सूची में शामिल करवा लिया है उनको वहां से तुरंत हटाया जाना भी अति आवश्यक है | यह भी ध्यान रखना होगा कि, असम में हिंसा से विस्थापितों का पुनर्वास करते समय घुसपैठियों को इन क्षेत्रों में पुनः न बसा दिया जाये और कोई घुसपैठिया आधार कार्ड न बनवाने पाये | अ.भा का. मंडल सरकार से यह भी मांग करता है कि भारत बंगलादेश सीमा पर बाड़ लगाने का अधूरा कार्य अविलम्ब पूरा किया जाये तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजिका ( National Register of Citizens ) को पूर्ण कर व्यवस्थित किया जाये |
अ.भा.का. मंडल देशभक्त नागरिकों से यह आग्रह करता है कि इस समस्या को राष्ट्रीय समस्या मानकर स्थान -स्थान पर इन विदेशी घुसपैठियों की पहचान तथा इनको मतदाता सूचियों से बाहर निकालने के कार्य में सक्रिय भूमिका निभायें तथा यह भी स्मरण रखें कि विदेशी घुसपैठियों को किसी प्रकार के काम या रोजगार देना गैर कानूनी ही नहीं अपितु देश के लिए घातक भी है |
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल 2012:
चीन के सन्दर्भ में समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के 50 वर्ष पूर्ण होने पर अपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए प्राण न्योछावर करने वाले उन हजारों बहादुर सैनिकों को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है | हिमालय के लदाख व अरुणाचल प्रदेश के उन बर्फीले युद्ध क्षेत्रों में पराक्रम की अनेक प्रेरणास्पद गाथायें उन बहादुर सैनिकों के पार्थिव शरीरों के साथ दबी पड़ी हैं | आज 50 वर्ष बाद भी उनके पार्थिव शरीर पर्वत शिखरों पर मिलते हैं |
वास्तव में उन शहीदों को विषम संख्या बल वअपर्याप्त युद्ध सामग्री के साथ युद्ध लड़ना पड़ा था | सर्वाधिक दु:खद यहहै कि अपनी असफलताओं को छिपाने के घिनौने प्रयास में देश के तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने उन वीर सैनिकों के शौर्य एवं बलिदान की गाथाओं को भी दबा दिया | अ.भा. कार्यकारी मंडल समस्त राष्ट्र से उनके पराक्रम एवं बलिदान को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का अनुरोध करता है |
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल भारत की अखंडता के प्रति अपनी दृढ प्रतिबद्धता को दोहराता है | 1962 का युद्ध राष्ट्र के लिए एक दु:खद स्मृति लिये हुए है | हमारी मातृभूमि का लगभग 38,000 वर्ग किमी क्षेत्र उस युद्ध में हमें चीनी आक्रान्ताओं के हाथ खोना पड़ा | अक्साई चिन क्षेत्र आज भी चीन के आधिपत्य में है | हमारी संसद ने 14 नवम्बर 1962 को एक सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा एक-एक इंच अधिक्रांत भूमि वापिस लेने का संकल्प किया था | परन्तु अ.भा.कार्यकारी मंडल इस बात पर व्यथा का अनुभव करता है कि सरकार उस उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में कोई कदम उठाने के स्थान पर केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा को ही वैधता प्रदान करने के लिए चीन के साथ सीमा वार्ताओं में संलग्न है | 1962 के बाद भी चीन ने अपने आक्रमण को विराम नहीं दिया है | भारत - तिब्बत सीमा के तीनो ही क्षेत्रों में बार-बार अतिक्रमण करते हुए वह धीरे-धीरे हमारी भूमि हडप रहा है |
यह सर्व विदित है कि 1962 की पराजय के लिए अपना राजनीतिक एवं कूटनीतिक नेतृत्व सीधा-सीधा उत्तरदायी है | तत्कालीन नेतृत्व ने वास्तविकताओं की अनदेखी करते हुए विश्व के बारे में अपनी अव्यवहारिक दृष्टि के चलते, सरदार पटेल एवं श्री गुरूजी सहित देश के कई सम्मानित व्यक्तियों की चेतावनी को भी अनसुना कर दिया | चीन ने पहले तिब्बत पर कब्ज़ा किया और फिर हमारे ऊपर आक्रमण कर दिया | दुर्भाग्य से उस युद्ध के तथ्य आज भी साऊथ ब्लॉक की आलमारियों में बंद पड़े हैं |यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि, अब तक की सभी सरकारों ने हेंडरसन ब्रुक्स - पी एसभगत रपट सहित इन सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया है | अ.भा. का. मंडल यह मांग करता है कि इस रपट को अविलम्ब सार्वजनिक किया जाये ताकि यह राष्ट्र उस रपट के निष्कर्षों का उपयोग कर सके तथा राजनीतिक, कूटनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व भी उन भूलों से सीख ले सके |
चीन ने पूरी भारत - तिब्बत सीमा पर सामरिक दृष्टि से वायुसेना अड्डे, प्रक्षेपास्त्रों की तैनातगी तथा सैन्य छावनियों एवं अन्य आधारभूत संरचनाओं का जाल बिछा दिया है | अ.भा.का.मंडल भारत सरकार से यह आग्रह करता है कि सीमा पर चीन की आक्रामक गतिविधियोंके कारण बढ़े खतरे को दृष्टिगत रखते हुए सीमा प्रबंधन एवं सुरक्षा तैयारियों के लिए पर्याप्त आर्थिक प्रावधान करे | भारतीय सेना की 'पर्वतीयआक्रामक सैन्यबल' ( Mountain Strike Corps ) विकसित करने की मांग सरकार के अनिर्णय व लाल फीता शाही के कारण लंबित पड़ी है | आधुनिक युद्ध केवल सीमापर ही नहीं लड़े जाते, इसलिए हमें चीन की अप्रत्याशित प्रहारक क्षमता को दृष्टिगत रखते हुए सैन्य तकनीकी श्रेष्ठता को समग्रता से विकसित करने की आवश्यकता है | प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी के विकास के क्षेत्र में जहाँ हम अपनी सफलताओं पर गौरवान्वित हैं वहीं हम आज भी अपनी अधिकांश सैन्य आवश्यकताओं के लिए आयातों पर अत्यधिक निर्भर हैं |
अपने देश के ऊर्जा, सूचना व संचारप्रौद्योगिकी , उद्योग एवं वाणिज्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चीन की गहरी पैठ और हमारी नदियों के जल को मोड़ने के उसके मंसूबे गंभीर चिंता का विषय है |
अ.भा.का.मंडल साइबर तकनीकी एवं संचार के क्षेत्र में चीन से उभरते खतरों की ओर भी ध्यान आकर्षित करना चाहता है | साइबर युद्ध तकनीक में भारी निवेश कर चीन ने ऐसी क्षमता विकसित कर ली है जिसका उपयोग कर वह अमरीका जैसे अति -विकसित देश की तकनीकी क्षमताओं को भी पंगु बना सकता है | वे देश चीन से इस खतरे के प्रति सजग हैं तथा आवश्यक प्रतिरोधी कदम उठा रहे हैं | अ.भा.का.मंडल भारत सरकार से आग्रह करता है कि जहां उच्च प्रौद्योगिकी के विकास में देश की प्रगति सराहनीय है वहीं उसे साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में आवश्यक विकास को भी समुचित महत्व देना चाहिए |
भारत सदैव विभिन्न देशों के साथ अच्छे संबंधो के निर्वहन हेतु प्रयासरत रहा है | आज से दो दशक पूर्व हमने अपनी पूर्वाभिमुख विदेश नीति ( Look East Policy ) के अंतर्गत पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व के देशों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने के प्रयत्न आरंभ किये थे | भारत सदैव विश्व शांति का पुरोधा रहा है | अ.भा.कार्यकारी मंडल भारत सरकार से यह आग्रह करता है कि , 1962 के अनुभवों से सीख लेते हुए, चीन के सन्दर्भ में एक 'समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति' के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दे ताकि हम अपने उदात्त आदर्शों की प्रस्थापना कर सकें |
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल 2011:
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रभावी रणनीतिक पहल आवश्यक
अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल देश की सीमाओं पर बढ़ते तनाव सीमा पार से देश में अलगाववाद व आतंकवाद को बढ़ावा देने की बढ़ती घटनाओं देश की वायु व सामुद्रिक सीमाओं पर उभरती चुनौतियों एवं अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक क्षेत्र व अंतरिक्ष में राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध उभरते खतरों के प्रति सरकार की उपेक्षा के प्रति गम्भीर चिन्ता व्यक्त करता है। इस सन्दर्भ में कार्यकारी मण्डल सुरक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियों पर ध्यान आकृष्ट करना चाहता है।
चीन से चुनौतियाँ
चीन भारतीय सीमा पर सैन्य दबाव बनाने के साथ-साथ वहाँ पर बार-बार सीमा का अतिक्रमण करते हुए सैन्य व असैन्य सम्पदा की तोड़ फोड़ एवं सीमा क्षेत्र में नागरिकों को लगातार आतंकित कर रहा है। भारत की सुनियोजित सैन्य घेराबन्दी करने के उद्देश्य से हमारे पड़ौसी देशों में चीन की सैन्य उपस्थिति, वहाँ उसके सैनिक अड्डों का विकास व उनके साथ रणनीतिक साझेदारी को भी गम्भीरतासे लेने की आवश्यकता है। पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध सशस्त्रीकरण व वहाँ पर भारत विरोधी आतंकवाद को संरक्षण, पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में चीन की सैन्य सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में शासन के सूत्रधार के रूप में उभरने के प्रयत्न एवं बाँग्लादेश, म्याँमा व श्रीलंका में चीनी सैन्य विशेषज्ञों की उपस्थिति इस घेराबन्दी के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
कार्यकारी मण्डल का मानना है कि सीमा पार से देश में आतंकवाद व अलगाववाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों को चीन का सक्रिय सहयोग देश की एकता व अखण्डता को सीधी चुनौती है। चीन द्वारा अपने साइबर योद्धाओं के माध्यम से देश के संचार व सूचना तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएँ एवं देश के विविध संवेदनशील स्थानों के निकट अत्यन्त अल्प निविदा मूल्य पर परियोजनाओं में प्रवेश के माध्यम से अपने गुप्तचर तंत्र का फैलाव भी देश की सुरक्षा के लिये गम्भीर संकट उत्पन्न करने वाला है।
चीन द्वारा 1962 के युद्ध में हस्तगत की गयी देश की 38,000 वर्ग किमी भूमि को वापस लेने के उसी वर्ष के 14 नवम्बर के संसद के संकल्प को भारत सरकार ने तो विस्मृत ही कर दिया है। दूसरी ओर चीन हमारे देश की 90,000 वर्ग किमी अतिरिक्त भूमि पर और दावा जता रहा है, जिसपर सरकार की प्रतिक्रिया अत्यन्त शिथिल रही है। इन दावों व सीमा क्षेत्र में चीन की सैन्य गतिविधियों को देखते हुए सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जैसी आधारभूत संरचनाएँ यथा दूरसंचार, रेल, सड़क व विमानपत्तन आदि की सुविधाएँ चाहिये, उनके विकास के प्रति भी सरकार की घोर उपेक्षा अत्यन्त चिन्तनीय है।
सुरक्षा की दृष्टि से चीन द्वारा एक साथ कई परमाणु बम ले जाने में सक्षम लम्बीदूरी के अन्तर्महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों को भारतीय सीमा पर तैनात किया जाना एक गम्भीर चुनौती है। चीन द्वारा उपग्रह भेदी एवं जहाज भेदी प्रक्षेपास्त्रों के सफल परीक्षण कर लिये गये हैं। उसने 8500 किमी की दूरी तक परमाणु बम ले जाने में सक्षम पनडुब्बी प्रक्षेपित बेलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र युक्त परमाणु पनडुब्बिया भी विकसित कर रखी है। इन सभी के प्रभावी प्रतिकार की सामर्थ्य का विकास भारत के लिए अविलम्ब आवश्यक है।
भारतीय बाजारों में चीन के उत्पादों की भरमार से रुग्ण होते भारतीय उद्यमों के साथ-साथ चीन के साथ भारी व्यापार घाटा भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये अत्यन्त गम्भीर चुनौती बन कर उभर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में प्रथम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास के आगे भारत द्वारा कोई प्रयत्न नहीं करने से आज तीसरी व चैथी पीढ़ी की अर्थात् 3जी व 4जी दूरसंचार प्रौद्योगिकी के सारे साज सामान चीनी ही लगाये जा रहे हैं। यह हमारे सूचना व संचार तंत्र की सुरक्षा के लिये संकट का द्योतक है।विद्युज्जनन संयत्रों सहित अन्य उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी चीन पर बढ़ते अवलम्बन से देश उन सभी क्षेत्रों में स्थायी रूप से चीन पर आश्रित होता जा रहा है।
चीनद्वारा ब्रह्मपुत्र नद व अन्य अनेक नदियों के बहाव को मोड़ने की शुरुआत के विरुद्ध भी कड़ा रुख अपनाते हुए भारत को चीन व तिब्बत से निकलने वाली नदियों के बहाव को मोड़ने से प्रभावित होने वाले सभी देशों यथा बाँग्लादेश, पाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड व म्याँमा को साथ लेकर नदी जल के न्यायपूर्ण वितरण के समझौते के लिए चीन को बाध्य करना चाहिए।
पाकिस्तानी कुचक्र
भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियां भी चिन्ताजनक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना के कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया है कि सीमा पार से घुसपैठ की घटनाओं में विगत कुछ माह के दौरान अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार अकेले कश्मीर की सीमा पर विगत साढ़े चारमाह के दौरान छिटपुट फायरिंग या घुसपैठ की 70 घटनाएँ घटी हैं। पाक सेना में कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव वहां के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी एक गम्भीर चुनौती बनता जा रहा है।
विगत दिनों सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का सरगना माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना और वहाँ उसकी सपरिवार वर्षों तक रहने की पुष्टि पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ गहरे सम्बन्धों को प्रकट करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि ओसामा को पकड़ने में मदद करने वाले चिकित्सक को गिरफ्तार कर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा है।
पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान में हामिद करजई सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। अपने आन्तरिक कारणों से अगले वर्ष से आरम्भ करते हुए अमरीकी सेना के वहाँ से हटने की स्थिति में पाकिस्तान वहाँ पुनः भारत विरोधी कट्टरपंथी तालिबान को सत्ता में लाना चाहता है। अफगानिस्तान में ऐसी कोई परिस्थिति भारत के लिए सीधी चुनौती होगी। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल पाक-अफगानिस्तान क्षेत्र की इन घटनाओं की तरफ सरकार का ध्यान आकृश्ट करना चाहता है।
विगत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए विस्फोट में एक बार पुनः आई. एस.आई. की संलिप्तता के प्रमाण मिले हैं। इधर इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि माओवादियों को मदद पहूँचाने में आई. एस. आई. का नेटवर्क चीन की मदद कर रहा है। पाक-अफगानिस्तान में सक्रिय अत्यन्त खतरनाक हक्कानी गुटके आई.एस.आई. से सम्बन्ध की बात अब जगजाहिर है। परन्तु इस सारे परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार का रवैया अभी भी निष्क्रियता का ही बना हुआ है।
बाँग्लादेश सीमा सम्बन्धी मुद्दे
सितम्बर 2011 में बाँग्लादेश के साथ हुई वार्ता में राष्ट्रीय हितों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। असम व प. बंगाल की कई हजार एकड़ भारतीय भूमि को यह कहकर बाँग्लादेश को सौंपना कि वहाँ पर उनका अवैध अधिकार पहले से ही है, किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता। भूमि की अदला-बदली में कम भूमि पाकर अधिक भूमि देने की बात विवेकहीन व अस्वीकार्य है। साथ ही ऐसा करने से कूचबिहार व जलपाईगुड़ी जैसे जिलों में बड़ी संख्या में बाँग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की जनसांख्यिकी बदल जाने से वहाँ अलगाववाद का संकट बढ़ेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसी वार्ताओं में भारत में अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बाँग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि बाँग्लादेश से होने वाले समझौतों में राष्ट्रहित,एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।
हिन्द महासागर क्षेत्र की चुनौतियाँ
अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल इस बात पर भी चिंतित है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में नये शक्ति समूहों के बीच तीव्र हो रही वर्चस्व की लड़ाई में यह क्षेत्र शीत युद्ध काल के यूरोप जैसा अखाड़ा बन रहा है। हिन्द महासागर क्षेत्र के देश संसाधन सम्पन्न हैं तथा नये शक्ति समीकरणों में रणनीतिक महत्व के स्थान लिये हुए हैं। भारत का सदियों से इस क्षेत्र में प्रमुख स्थान रहा है।अ.भा.का.म. का मत है कि इस समूचे क्षेत्र के साथ दो हजार वर्षों से चले आ रहे सभ्यतामूलक व सांस्कृतिक सम्बन्धों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
चीन ने अपनी समुद्री शक्ति तथा नौसैनिक गतिविधियों में अत्यधिक वृद्धि की है।इस क्षेत्र में उसकी आक्रामक उपस्थिति तनाव उत्पन्न करने वाली है। दूसरी ओर अमरीका दिएगो गार्सिया के सुदूर क्षेत्र में स्वयं को असहज पाकर इस क्षेत्र में निकटता पूर्वक अपनी पैठ और मजबूत करने के प्रयास में है। वर्ष2003 में इण्डोनेशिया से ईस्ट टिमोर का अलग होना, अपने पड़ोसी श्रीलंका व लिट्टे का संघर्श. ताइवानमुद्दा आदि इस क्षेत्र में बड़े शक्ति संघर्ष के द्योतक हैं। इन दो शक्तिओंके बीच वर्चस्व की स्पर्धा इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगाड़ कर तनाव बढ़ा रही है।
अ.भा.का.म. का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में भारत मूक दर्शक बन कर नहीं रह सकता। इस क्षेत्र के कई देश भारत को शांति व स्थिरता का आश्वासन देने वाली कल्याणकारी शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं।
हमारी सरकार की पूर्वोन्मुख (look east) नीति को 20 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि अब इस नीति को कार्य रूप में बदलकर क्षेत्र के सभी देशों से सम्बन्ध और अधिक सुदृढ़ किये जाएँ। हमारी विदेश नीति के उद्देश्य हमारी रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरुप होना चाहिए। इस सम्बन्ध में म्याँमा व वियतनाम जैसे देशों के साथ की गयी नयी पहल का कार्यकारी मण्डल स्वागत करता है।
हिन्द महासागर में चीन व उसके सहयोगी देशों के इस युद्धोन्माद का हाल में भारत भी अनुभव कर रहा है। विगत दिनों की दो घटनाएँ उनकी इस प्रकार की अखंडता की परिचायक हैं। पहली वियतनाम के पास दक्षिण चीनी समुद्र में भारत तथा चीनी नौसेनाओं में तनाव की व दूसरी सिन्धु सागर (अरब सागर) में भारत व पाकिस्तानी युद्धपोतों के बीच की घटना है। ग्वाडर से हम्बनतोटा व चटगाँव से कोकोद्वीप तक हिन्द महासागर में बढ़ता हुआ चीनी प्रभाव हमारी सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। हिन्द महासागर में अपनी नौ सैनिक उपस्थिति बढ़ाने के लिये ही चीन ने वहाँ10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाली मेटेलिक सल्फाइड्स के खनन की अनुज्ञा प्राप्त की है।
हमारे सशस्त्र सैन्य बल ऐसे सभी खतरों से निपटने में पूरी तरह से सक्षम है। हमारे सैन्य बलों ने अपनी इस क्षमता का कई बार प्रदर्शन किया है। लेकिन सरकार द्वारा उन्हे वांछित ढाँचागत व शस्त्रास्त्र आधुनिकीकरण में सहयोग प्रदान नहीं किया जा रहा है।
देशकी सामान्य जनता में व्यापक रूप से विद्यमान राष्ट्रवादी आकांक्षाओं तथा हमारे राजनीतिक तंत्र के नीतिगत दृष्टिकोण के बीच गहरी खाई है। हमारे पास प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक दक्षता, सैन्य क्षमता तथा देशभक्ति का ज्वार है। लेकिन दुर्भाग्य से इन तत्वों की अभिव्यक्ति सरकार की नीतिगत पहल में दिखाई नहीं पड़ती है।
सुरक्षा सम्बन्धी इन चुनौतियों के चलते अ. भा. कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि वह भारत-तिब्बत सीमा सहित देश की सम्पूर्ण थल सीमा, सामुद्रिक सीमा, वायु सीमा, अंतरिक्ष व समग्र सामुद्रिक क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु प्रभावी कदम उठाए। साथ ही अलगाववाद, आतंकवाद व अवैध घुसपैठ जैसी सभी सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करे। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि सरकार देश के समक्ष उभरती सभी रक्षा चुनौतियों के प्रतिकार हेतु प्रभावी सुरक्षा प्रणालियों के विकास के साथ-साथ आर्थिक व उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी समग्र स्वावलम्बन के लिये व्यापक प्रयत्न करे। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल जनता से भी आवाहन करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर निरन्तर सजग रहते हुए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिये बाध्य करे।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2012:
समाज की एकता और एकात्मता को सर्वोपरि रखें
भारत में आज भूमि अधिकार, राजनैतिक अधिकार, बाँध तथा नदी-जल का बँटवारा, एक राज्य से दूसरे राज्य में लोगों का स्थानांतर, जाति, जनजाति और संप्रदाय के आधार पर विभिन्न गुटों में हो रहे संघर्ष इत्यादि विविध विषयों पर जन अभियान खड़े होते हुए दिखाई दे रहे हैं। इन अभियानों में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के कृत्यों के कारण समाज के विभिन्न घटकों में जो वैमनस्य बढ़ रहा है उस पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चिंता व्यक्त करती है।
अ.भा.प्र.स. कहना चाहती है कि परिपक्व राजनीतिज्ञों द्वारा ऐसे विषयों को अत्यंत सावधानी तथा संवेदनशीलता से संभालना चाहिये। समाज की एकता और एकात्मता को सर्वोपरि मानकर ही ऐसे विषयों का हल ढूँढना चाहिये। दुर्दैव से अनुभव में यही आ रहा है कि क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए जनता की भावनाओं को उछाला जा रहा है, जिसके कारण समाज के एकत्व को क्षति पहुँच रही है।
जनप्रबोधन और जागरण में प्रचार माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसे विषयों में कुछ प्रचार माध्यमों की सनसनी फैलाने की प्रवृत्ति न केवल इन अभियानों को नुकसान पहुँचाएगी वरन सामाजिक तानेबाने पर भी उसका विपरीत असर होगा। ऐसे अभियानों का नेतृत्व करने वाले सामाजिक संगठनों का यह गुरुतरदायित्व बनता है कि वे विभेदकारी प्रवृत्तियों को हावी न होने दें तथा निहित स्वार्थ रखने वाले अन्तर्बाह्य तत्वों को इन अभियानों का लाभ न उठाने दें, ताकि वे सामाजिक सामंजस्य तथा राष्ट्रीय एकता के वातावरण को हानि न पहुँचा सकें। प्रतिनिधि सभा प्रचार माध्यमों और सामाजिक संगठनों के नेतृत्वकर्ताओंका आवाहन करती है कि वे ऐसे अभियानों को सही दिशा प्रदान करने में रचनात्मक भूमिका निभाएँ।
ऐसे अभियानों को जन्म देने वाले लगभग सभी विषयों में दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक व्यथाएँ तथा शिकायतें हो सकती हैं। प्रतिनिधि सभा ऐसे अभियानों के नेताओं तथा सहभागी जनता का आवाहन करती है कि वे समाज की व्यापक एकता और एकात्मता को अपनी दृष्टि से ओझल न होने दें। अपनी माँगों का समर्थन करते हुए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि अपने वक्तव्यों तथा कृत्यों से हमारे सामाजिक तानेबाने में दरार न आये तथा राष्ट्रीय एकता के सूत्र कमजोर न हों।
अ.भा.प्र.स. इसे गंभीर चिंता का विषय मानती है कि ’साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा रोक विधेयक’ तथा अल्पसंख्यक आरक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार की कार्यवाहियाँ समाज के विभिन्न घटकों में विभेद और वैमनस्य पैदा करने का कारण सिद्ध हो रही हैं। केन्द्र तथा कुछ राज्य सरकारों द्वारा अन्य पिछडे़ वर्गों के 27 प्रतिशत आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत हिस्सा अल्पसंख्यकों के लिए निकालने के संविधान-विरोधी निर्णय को पूरे राष्ट्र ने नकारना चाहिये। प्रतिनिधि सभा जोर देकर कहना चाहती है कि राष्ट्र की नीतियों का निर्धारण तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए नहीं वरन एक जन - एक राष्ट्र के सिद्धान्त के आधार पर होना चाहिये।
अ.भा. प्रतिनिधि सभा समस्त देशवासियों का और विशेष रूप से स्वयंसेवकों का आवाहन करती है कि क्षुद्र स्वार्थों के लिए सामाजिक एकता को नष्ट करने के कुछ समाज-घटकों के प्रयासों को परास्त करने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल 2011:
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रभावी रणनीतिक पहल आवश्यक
अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल देश की सीमाओं पर बढ़ते तनाव सीमा पार से देश में अलगाववाद व आतंकवाद को बढ़ावा देने की बढ़ती घटनाओं देश की वायु व सामुद्रिक सीमाओं पर उभरती चुनौतियों एवं अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक क्षेत्र व अंतरिक्ष में राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध उभरते खतरों के प्रति सरकार की उपेक्षा के प्रति गम्भीर चिन्ता व्यक्त करता है। इस सन्दर्भ में कार्यकारी मण्डल सुरक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियों पर ध्यान आकृष्ट करना चाहता है।
चीन से चुनौतियाँ
चीन भारतीय सीमा पर सैन्य दबाव बनाने के साथ-साथ वहाँ पर बार-बार सीमा का अतिक्रमण करते हुए सैन्य व असैन्य सम्पदा की तोड़ फोड़ एवं सीमा क्षेत्र में नागरिकों को लगातार आतंकित कर रहा है। भारत की सुनियोजित सैन्य घेराबन्दी करने के उद्देश्य से हमारे पड़ौसी देशों में चीन की सैन्य उपस्थिति, वहाँ उसके सैनिक अड्डों का विकास व उनके साथ रणनीतिक साझेदारी को भी गम्भीरतासे लेने की आवश्यकता है। पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध सशस्त्रीकरण व वहाँ पर भारत विरोधी आतंकवाद को संरक्षण, पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में चीन की सैन्य सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में शासन के सूत्रधार के रूप में उभरने के प्रयत्न एवं बाँग्लादेश, म्याँमा व श्रीलंका में चीनी सैन्य विशेषज्ञों की उपस्थिति इस घेराबन्दी के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
कार्यकारी मण्डल का मानना है कि सीमा पार से देश में आतंकवाद व अलगाववाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों को चीन का सक्रिय सहयोग देश की एकता व अखण्डता को सीधी चुनौती है। चीन द्वारा अपने साइबर योद्धाओं के माध्यम से देश के संचार व सूचना तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएँ एवं देश के विविध संवेदनशील स्थानों के निकट अत्यन्त अल्प निविदा मूल्य पर परियोजनाओं में प्रवेश के माध्यम से अपने गुप्तचर तंत्र का फैलाव भी देश की सुरक्षा के लिये गम्भीर संकट उत्पन्न करने वाला है।
चीन द्वारा 1962 के युद्ध में हस्तगत की गयी देश की 38,000 वर्ग किमी भूमि को वापस लेने के उसी वर्ष के 14 नवम्बर के संसद के संकल्प को भारत सरकार ने तो विस्मृत ही कर दिया है। दूसरी ओर चीन हमारे देश की 90,000 वर्ग किमी अतिरिक्त भूमि पर और दावा जता रहा है, जिसपर सरकार की प्रतिक्रिया अत्यन्त शिथिल रही है। इन दावों व सीमा क्षेत्र में चीन की सैन्य गतिविधियों को देखते हुए सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जैसी आधारभूत संरचनाएँ यथा दूरसंचार, रेल, सड़क व विमानपत्तन आदि की सुविधाएँ चाहिये, उनके विकास के प्रति भी सरकार की घोर उपेक्षा अत्यन्त चिन्तनीय है।
सुरक्षा की दृष्टि से चीन द्वारा एक साथ कई परमाणु बम ले जाने में सक्षम लम्बीदूरी के अन्तर्महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों को भारतीय सीमा पर तैनात किया जाना एक गम्भीर चुनौती है। चीन द्वारा उपग्रह भेदी एवं जहाज भेदी प्रक्षेपास्त्रों के सफल परीक्षण कर लिये गये हैं। उसने 8500 किमी की दूरी तक परमाणु बम ले जाने में सक्षम पनडुब्बी प्रक्षेपित बेलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र युक्त परमाणु पनडुब्बिया भी विकसित कर रखी है। इन सभी के प्रभावी प्रतिकार की सामर्थ्य का विकास भारत के लिए अविलम्ब आवश्यक है।
भारतीय बाजारों में चीन के उत्पादों की भरमार से रुग्ण होते भारतीय उद्यमों के साथ-साथ चीन के साथ भारी व्यापार घाटा भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये अत्यन्त गम्भीर चुनौती बन कर उभर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में प्रथम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास के आगे भारत द्वारा कोई प्रयत्न नहीं करने से आज तीसरी व चैथी पीढ़ी की अर्थात् 3जी व 4जी दूरसंचार प्रौद्योगिकी के सारे साज सामान चीनी ही लगाये जा रहे हैं। यह हमारे सूचना व संचार तंत्र की सुरक्षा के लिये संकट का द्योतक है।विद्युज्जनन संयत्रों सहित अन्य उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी चीन पर बढ़ते अवलम्बन से देश उन सभी क्षेत्रों में स्थायी रूप से चीन पर आश्रित होता जा रहा है।
चीनद्वारा ब्रह्मपुत्र नद व अन्य अनेक नदियों के बहाव को मोड़ने की शुरुआत के विरुद्ध भी कड़ा रुख अपनाते हुए भारत को चीन व तिब्बत से निकलने वाली नदियों के बहाव को मोड़ने से प्रभावित होने वाले सभी देशों यथा बाँग्लादेश, पाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड व म्याँमा को साथ लेकर नदी जल के न्यायपूर्ण वितरण के समझौते के लिए चीन को बाध्य करना चाहिए।
पाकिस्तानी कुचक्र
भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियां भी चिन्ताजनक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना के कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया है कि सीमा पार से घुसपैठ की घटनाओं में विगत कुछ माह के दौरान अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार अकेले कश्मीर की सीमा पर विगत साढ़े चारमाह के दौरान छिटपुट फायरिंग या घुसपैठ की 70 घटनाएँ घटी हैं। पाक सेना में कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव वहां के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी एक गम्भीर चुनौती बनता जा रहा है।
विगत दिनों सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का सरगना माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना और वहाँ उसकी सपरिवार वर्षों तक रहने की पुष्टि पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ गहरे सम्बन्धों को प्रकट करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि ओसामा को पकड़ने में मदद करने वाले चिकित्सक को गिरफ्तार कर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा है।
पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान में हामिद करजई सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। अपने आन्तरिक कारणों से अगले वर्ष से आरम्भ करते हुए अमरीकी सेना के वहाँ से हटने की स्थिति में पाकिस्तान वहाँ पुनः भारत विरोधी कट्टरपंथी तालिबान को सत्ता में लाना चाहता है। अफगानिस्तान में ऐसी कोई परिस्थिति भारत के लिए सीधी चुनौती होगी। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल पाक-अफगानिस्तान क्षेत्र की इन घटनाओं की तरफ सरकार का ध्यान आकृश्ट करना चाहता है।
विगत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए विस्फोट में एक बार पुनः आई. एस.आई. की संलिप्तता के प्रमाण मिले हैं। इधर इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि माओवादियों को मदद पहूँचाने में आई. एस. आई. का नेटवर्क चीन की मदद कर रहा है। पाक-अफगानिस्तान में सक्रिय अत्यन्त खतरनाक हक्कानी गुटके आई.एस.आई. से सम्बन्ध की बात अब जगजाहिर है। परन्तु इस सारे परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार का रवैया अभी भी निष्क्रियता का ही बना हुआ है।
बाँग्लादेश सीमा सम्बन्धी मुद्दे
सितम्बर 2011 में बाँग्लादेश के साथ हुई वार्ता में राष्ट्रीय हितों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। असम व प. बंगाल की कई हजार एकड़ भारतीय भूमि को यह कहकर बाँग्लादेश को सौंपना कि वहाँ पर उनका अवैध अधिकार पहले से ही है, किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता। भूमि की अदला-बदली में कम भूमि पाकर अधिक भूमि देने की बात विवेकहीन व अस्वीकार्य है। साथ ही ऐसा करने से कूचबिहार व जलपाईगुड़ी जैसे जिलों में बड़ी संख्या में बाँग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की जनसांख्यिकी बदल जाने से वहाँ अलगाववाद का संकट बढ़ेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसी वार्ताओं में भारत में अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बाँग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि बाँग्लादेश से होने वाले समझौतों में राष्ट्रहित,एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।
हिन्द महासागर क्षेत्र की चुनौतियाँ
अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल इस बात पर भी चिंतित है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में नये शक्ति समूहों के बीच तीव्र हो रही वर्चस्व की लड़ाई में यह क्षेत्र शीत युद्ध काल के यूरोप जैसा अखाड़ा बन रहा है। हिन्द महासागर क्षेत्र के देश संसाधन सम्पन्न हैं तथा नये शक्ति समीकरणों में रणनीतिक महत्व के स्थान लिये हुए हैं। भारत का सदियों से इस क्षेत्र में प्रमुख स्थान रहा है।अ.भा.का.म. का मत है कि इस समूचे क्षेत्र के साथ दो हजार वर्षों से चले आ रहे सभ्यतामूलक व सांस्कृतिक सम्बन्धों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
चीन ने अपनी समुद्री शक्ति तथा नौसैनिक गतिविधियों में अत्यधिक वृद्धि की है।इस क्षेत्र में उसकी आक्रामक उपस्थिति तनाव उत्पन्न करने वाली है। दूसरी ओर अमरीका दिएगो गार्सिया के सुदूर क्षेत्र में स्वयं को असहज पाकर इस क्षेत्र में निकटता पूर्वक अपनी पैठ और मजबूत करने के प्रयास में है। वर्ष2003 में इण्डोनेशिया से ईस्ट टिमोर का अलग होना, अपने पड़ोसी श्रीलंका व लिट्टे का संघर्श. ताइवानमुद्दा आदि इस क्षेत्र में बड़े शक्ति संघर्ष के द्योतक हैं। इन दो शक्तिओंके बीच वर्चस्व की स्पर्धा इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगाड़ कर तनाव बढ़ा रही है।
अ.भा.का.म. का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में भारत मूक दर्शक बन कर नहीं रह सकता। इस क्षेत्र के कई देश भारत को शांति व स्थिरता का आश्वासन देने वाली कल्याणकारी शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं।
हमारी सरकार की पूर्वोन्मुख (look east) नीति को 20 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि अब इस नीति को कार्य रूप में बदलकर क्षेत्र के सभी देशों से सम्बन्ध और अधिक सुदृढ़ किये जाएँ। हमारी विदेश नीति के उद्देश्य हमारी रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरुप होना चाहिए। इस सम्बन्ध में म्याँमा व वियतनाम जैसे देशों के साथ की गयी नयी पहल का कार्यकारी मण्डल स्वागत करता है।
हिन्द महासागर में चीन व उसके सहयोगी देशों के इस युद्धोन्माद का हाल में भारत भी अनुभव कर रहा है। विगत दिनों की दो घटनाएँ उनकी इस प्रकार की अखंडता की परिचायक हैं। पहली वियतनाम के पास दक्षिण चीनी समुद्र में भारत तथा चीनी नौसेनाओं में तनाव की व दूसरी सिन्धु सागर (अरब सागर) में भारत व पाकिस्तानी युद्धपोतों के बीच की घटना है। ग्वाडर से हम्बनतोटा व चटगाँव से कोकोद्वीप तक हिन्द महासागर में बढ़ता हुआ चीनी प्रभाव हमारी सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। हिन्द महासागर में अपनी नौ सैनिक उपस्थिति बढ़ाने के लिये ही चीन ने वहाँ10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाली मेटेलिक सल्फाइड्स के खनन की अनुज्ञा प्राप्त की है।
हमारे सशस्त्र सैन्य बल ऐसे सभी खतरों से निपटने में पूरी तरह से सक्षम है। हमारे सैन्य बलों ने अपनी इस क्षमता का कई बार प्रदर्शन किया है। लेकिन सरकार द्वारा उन्हे वांछित ढाँचागत व शस्त्रास्त्र आधुनिकीकरण में सहयोग प्रदान नहीं किया जा रहा है।
देशकी सामान्य जनता में व्यापक रूप से विद्यमान राष्ट्रवादी आकांक्षाओं तथा हमारे राजनीतिक तंत्र के नीतिगत दृष्टिकोण के बीच गहरी खाई है। हमारे पास प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक दक्षता, सैन्य क्षमता तथा देशभक्ति का ज्वार है। लेकिन दुर्भाग्य से इन तत्वों की अभिव्यक्ति सरकार की नीतिगत पहल में दिखाई नहीं पड़ती है।
सुरक्षा सम्बन्धी इन चुनौतियों के चलते अ. भा. कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि वह भारत-तिब्बत सीमा सहित देश की सम्पूर्ण थल सीमा, सामुद्रिक सीमा, वायु सीमा, अंतरिक्ष व समग्र सामुद्रिक क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु प्रभावी कदम उठाए। साथ ही अलगाववाद, आतंकवाद व अवैध घुसपैठ जैसी सभी सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करे। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि सरकार देश के समक्ष उभरती सभी रक्षा चुनौतियों के प्रतिकार हेतु प्रभावी सुरक्षा प्रणालियों के विकास के साथ-साथ आर्थिक व उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी समग्र स्वावलम्बन के लिये व्यापक प्रयत्न करे। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल जनता से भी आवाहन करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर निरन्तर सजग रहते हुए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिये बाध्य करे।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2011:
राष्ट्रीय हितों व सुरक्षा के विरुद्ध चीनी षड़यन्त्रों को विफल करें
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चीन के बहु-आयामी खतरों और उसकी आक्रामक व धमकी भरी चालों के प्रति भारत सरकार के निस्तेज व्यवहार पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त करती है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा किये जा रहे गम्भीर सीमोल्लंघनों से सरकार सतत इन्कार कर रही है और उनके बारे में लापरवाही पूर्वक यह कह रही है कि ‘यह वास्तविक नियन्त्रण रेखा के बोध में समान दृष्टी का अभाव है’। दोनों देशों के रणनीतिक विरोधाभास को कम करके आंकते हुये चीन की विस्तारवादी व साम्राज्यवादी कुटिलताओं को उजागर करने में विफल हो रही है। यह स्थिति राष्ट्रीय हितों के लिये घातक सिद्ध हो सकती है।
अ.भा.प्र.स. सचेत करती है कि चीन व पाकिस्तान के बीच बढ़ता सैन्य व असैन्य सहयोग, अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गम्भीर चिंता का विषय है। स्कार्डू क्षेत्र (पाक अधिकृत कश्मीर ) में निर्माण कार्यों व काराकोरम राजमार्ग की मरम्मत की आड़ में दस हजार चीनी सैन्य बल की उपस्थिति एक गम्भीर मुद्दा है जो कश्मीर की घेराबन्दी का ही प्रयत्न है। चीन द्वारा अपना वर्चस्व स्थापित करने वाले अन्य चिंताजनक विषयों में पाकिस्तान को एक गीगा वाट का नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र देना और बैलिस्टीक प्रक्षेपास्त्रों की प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना है, जो क्षेत्र में सम्भावित नाभिकीय युद्ध की परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
हाल की कई घटनाओं में चीन के दुर्भावनापूर्ण इरादे उजागर हुए हैं। उसने यह मिथ्या आरोप लगाया है कि भारत ने अरुणाचल व सिक्किम सहित चीन की 90,000 वर्ग कि.मी. भूमि दबा रखी है। वह अपने मानचित्रों में जम्मू कश्मीर प्रदेश को भारत का अंग नहीं दिखा रहा है। जम्मू कश्मीर में 1600 कि.मी. लंबी भारत-तिब्बत सीमा पर, नियंत्रण रेखा को भी नही दिखा रहा है। अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ जम्मू कश्मीर के भारतीय नागरिकों को भी पृथक काग़ज पर वीजा देना आरंभ कर दिया है। चीनी सैन्य टुकड़ियों ने पिछले वर्ष डेमचोक के गोम्बीर क्षेत्र में घुस कर वहाँ चल रहे निर्माण कार्य रुकवा दिये थे। नवम्बर 2009 में लद्दाख में केन्द्र प्रायोजित नरेगा योजना के अंतर्गत हो रहा सड़क निर्माण भी चीनी सेना की आपत्ति पर रोक दिया गया है। वस्तुतः चीन ने ही नियंत्रण रेखा के अंदर घुसकर हमारे क्षेत्र पर कब्जा जमाया और वहाँ सैन्य उद्देशों के लिए 54 कि.मी. लंबी सडक बनायी है।
अपने देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में चीन द्वारा रचे जा रहे षड़यंत्रों को भी अ.भा.प्र.स. एक गम्भीर संकट के रूप में देखती है। अरुणाचल पर उसके द्वारा सतत जताए जा रहे दावे को भी हल्का करके नहीं आंकना चाहिये क्योंकि वहाँ चीन ने मात्र उस प्रदेश पर ही नहीं वरन् संपूर्ण पूर्वोत्तर पर दृष्टी गड़ा रखी है। हाल ही में देश की एक प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित एन.एस.सी.एन. विद्रोहियों जैसे आतंकवादी गुटों को प्रोत्साहित करने एवं उन्हें शस्त्रास्त्र और वित्तीय सहायता प्रदान करने में चीन की संलिप्तता के प्रमाण भी हमें उस दिशा में सतर्क करने को पर्याप्त है। एन.एस.सी.एन. के अतिरिक्त एन.डी.एफ.बी. व उल्फा विद्रोहियों को भी चीन संबल दे रहा है। यह भी गम्भीर चिन्ता का विषय है कि इस क्षेत्र में आई.एस.आई. भी चीन के साथ मिलकर काम कर रही है। देश के विभिन्न भागों में चीनी गुप्तचरों के पकड़े जाने की बढ़ती हुई घटनाओं पर प्रतिनिधि सभा अपनी चिंता व्यक्त करती है।
यह भी सुविदित है कि चीन के शासकीय शस्त्र उत्पादकों द्वारा उत्पादित शस्त्रास्त्र बांगला देश के कॉक्स बाजार जैसे अवैध अड्डों के माध्यम से भारतीय माओवादियों और अन्य आतंकवादियों तक पहुँच रहे हैं । चीन द्वारा भारत में नकली मुद्रा भेजी जा रही है। अ.भा.प्र.स. सरकार व जनता का ध्यान चीनी शासन के नियंत्रण में चलने वाले प्रसार माध्यमों के उन प्रकाशनों की ओर भी आकृष्ट करना चाहती है जिनमें भारत को 20-30 भागों में विखण्डित करने की बात कही गई है।
भारत के बाजारों में चीनी वस्तुओं के व्यापक प्रवेश से भारतीय उद्योगों पर हो रहे प्रतिकूल प्रभावों के साथ ही हमारी सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं रणनीति के लिए भी गम्भीर चुनौती उत्पन्न हो गई है। अ.भा.प्र.स. चाहती है कि सरकार हमारे तंत्र में व्यापार व वाणिज्य के माध्यम से हो रही चीनी घुसपैठ को गम्भीरता से ले। सभी नागरिक देशभक्ति का परिचय देते हुए चीनी वस्तुओं के उपयोग से बचें।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा भारत सरकार व देशवासियों का ध्यान दक्षिण मध्य तिब्बत क्षेत्र में नदियों के जल का प्रवाह मोड़ने के चीनी खतरे की ओर आकृष्ट करना चाहती है। अपने इस प्रयास द्वारा चीन तिब्बत स्थित कैलाश-मानसरोवर से निकलने वाली सिन्धु व ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के जल पर भारत, नेपाल, भूटान, बांगला देश, म्याँमा व थाईलैण्ड जैसे देशों के न्यायोचित अधिकार का हरण कर रहा है। जल प्रबंधन के विषय में चीन के अतिगोपनीयता वाले रुख के कारण वर्ष 2007 में जल संबंधी मुद्दों का हल ढूंढ़ने के लिए स्थापित की गई भारत-चीन संयुक्त प्रणाली भी अवरुद्ध हो गई है। हमारे दो प्रदेश - हिमाचल व अरुणाचल में अचानक बाढ़ से तबाही हुई। उस समय यह संदेह उत्पन्न हुआ कि इसका कारण जल प्रवाह में चीन द्वारा की गई छेड़छाड़ है। हमारे इंजीनियरों को नदी की ऊपरी धारा का निरीक्षण करने की अनुमति नहीं दी गई थी। प्रतिनिधि सभा सरकार को सचेत करना चाहती है कि यदि इस विवाद का समाधान तत्काल नहीं ढूंढ़ा गया तो दोनों देशों के बीच इसे लेकर गम्भीर संकट उत्पन्न हो सकता है।
प्रतिनिधि सभा सरकार से आग्रह करती है कि अपने पड़ोस में ही नहीं अपितु अफ्रीका एवं पश्चिम एशिया जैसे रणनीतिक दृष्टी से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी चीन की बढ़ती सैनिक व कूटनीतिक शक्ति की तरफ ध्यान दे। चीन अपनी 31 लाख सेना का अत्याधुनिक शस्त्र व प्रौद्योगिकी के साथ तीव्र गति से आधुनिकीकरण कर रहा है। चीन तिब्बत, नेपाल व भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों तथा रेल लाईनों का जाल बिछा चुका है। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन आज एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया है। उत्तर कोरिया, सूडान सहित अनेक देशों के उन्मत्त तानाशाह शासकों के साथ चीन के गहरे संबंध हैं। चीन के रणनीतिकारों का यह विचार खतरनाक है कि चीन को किसी भी परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के विरुद्ध अपनी सुरक्षा के नाम पर आणविक हमले का प्रथम अधिकार सुरक्षित रखना चाहिए। ऐसे चुनौतीपूर्ण परिदृष्य में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सरकार का आवाहन करती है कि:
1. चीन द्वारा भारत की कब्जा की गई एक-एक इंच भूमि को वापस लेने के सन् 1962 के संसद के सर्व सम्मत संकल्प को दोहराया जाए।
2. हमारी सेना के शीघ्र आधुनिकीकरण एवं सैन्य ढांचागत सुविधाओं के उन्नयन के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाएँ। इस हेतु सीमांत क्षेत्रों में अधिसंरचना का निर्माण करने पर विशेष बल दिया जाए। सीमावर्ती क्षेत्रीय विकास अभिकरण (एजेन्सी) के गठन पर विचार किया जाना चाहिए जिससे सीमावर्ती क्षेत्र के गाँवों से लोगों का पलायन भी रुक सके।
3. विश्व के समक्ष चीन के मनसूबों को उजागर करने के लिए आक्रामक कूटनीति का उपयोग किया जाए। आसियान व संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों का इस दृष्टी से कुशल उपयोग हो।
4. भारत के बाजार में चीनी उत्पादकों को खुले खेल की अनुमति न दी जाए। खिलौने, मोबाईल तथा अन्य प्रकार के चीनी उत्पादों की बिक्री पर तत्काल रोक लगाई जाए। सीमावर्ती दर्रो के माध्यम से किये जा रहे अवैध व्यापार दृढ़ता-पूर्वक रोका जाना चाहिए।
5. वीजा नियमों का कठोरता से पालन किया जाय तथा भारत में कार्यरत चीनी नागरिकों पर सतर्क दृष्टी रखी जाए।
6. रणनीतिक दृष्टी से महत्वपूर्ण क्षेत्रों एवं संवेदन शील इलाकों में चीनी कंपनियों को प्रवेश की अनुमति न दी जाए।
7. नदी जल प्रवाह को रोकने के अवैध चीनी प्रयासों के विरुद्ध म्याँमा व बांगला देश जैसे नदी तटीय देशों को एकजुट किया जाए।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2011:
भ्रष्टाचार पर निर्णायक प्रहार आवश्यक
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, देश में तेज गति से व्यापक स्तर पर उभर रहे भ्रष्टाचार के अन्तहीन प्रकरणों की शृंखला पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करती है। यह बात और भी स्तब्ध कर देने वाली है कि प्रधानमंत्री-सहित सरकार में उत्तरदायी पदों पर आसीन प्रमुख पदाधिकारीगण भ्रष्टाचार के सभी अकाट्य प्रमाणों को नकारते हुए, अपनी पूरी शक्ति, इन प्रकरणों में लिप्त दोषी व्यक्तियों को निर्दोष कहकर उन्हें अन्तिम पल तक बचाने में लगे हुए हैं।
अ. भा. प्रतिनिधि सभा यह परिदृष्य देख व्यथित है कि नित्य उजागर हो रहे नये-नये घोटालों से देश की गरिमा व प्रतिष्ठा पर गम्भीर आँच आ रही है। भ्रष्टाचार का व्याप व परिमाण ऐसा है कि उसका आकलन करने में जनसामान्य ही नहीं, विशेषज्ञों तक की बुद्धि चकरा जाती है। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजनों में हुई व्यापक धाँधली ने पूरे राष्ट्र की प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचाया है। देश के शासक या तो आँखें मूंद कर बैठे हैं, या न्यायपालिका और प्रचार माध्यमों के दबाव में, मात्र दिखावे के लिए दोषीयों के विरुद्ध कदम उठा रहे हैं । केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति जैसे अत्यंत संवेदनशील प्रकरण में सत्ताशीर्ष द्वारा की गयी गलती के पीछे क्या विवशता थी एवं कौनसी अदृष्य शक्ति थी, इसे देश जानना चाहता है।
दुर्भाग्यवश, स्वातंत्र्योत्तर भारत में समाज-जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में राजनीति के बढ़ते वर्चस्व के साथ ही सत्ताशीर्ष से होनेवाले भ्रष्टाचार की घटनाएँ निरंतर बढ़ती गई हैं । स्वाधीनता के पश्चात् राष्ट्र ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनमानस की व्यापक प्रतिक्रिया को विराट जन-आंदोलनों में परिवर्तित होते देखा है। 1974-75 का जे.पी. आंदोलन व आपात्काल तथा 1987-89 में बोफोर्स घोटाले को लेकर हुए आंदोलन, दोनों की तार्किक परिणति सत्ता-परिवर्तन में हुई। परन्तु इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार घटा हो; ऐसा प्रतीत नहीं होता है। वरन् इसके विपरीत आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के बाद भ्रष्टाचार का प्रकार व परिमाण अधिक जटिल व व्यापक होता गया है। 1992 का शेयर घोटाला हो या वर्तमान 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, सभी में अकूत धनराशी की हेराफेरी हुई है। साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि लगातार बढ़ते जा रहे इस भ्रष्टाचार को करने वाले अधिकतर लोग उच्च शिक्षित और समाज के समृद्ध वर्ग के हैं। ये सारे तथ्य इस बात का सुस्पष्ट संकेत देते हैं कि समाज में व्यक्ति-निर्माण की प्रक्रिया को अधिक सघन व व्यापक करने की आवश्यकता है।
इस सम्बन्ध में अ.भा.प्र.स. का यह भी मानना है कि समाज जीवन के सभी अंगों को धर्माधारित, मूल्यपरक व नैतिकतापूर्ण करने की नितान्त आवश्यकता है। यह कार्य शिक्षा व्यवस्था को चरित्र निर्माण में सक्षम,राष्ट्रीय चेतनापरक व सत्संस्कारयुक्त बनाने से ही सम्भव होगा। साथ ही समाज जीवन में नैतिक मूल्यों के संवर्द्धन के लिये उच्च पदासीन व्यक्तियों को अपने आचरण से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे।
इन दूरगामी परिणाम देने वाले सुधारों के साथ ही, शासन -प्रशासन की प्रणाली में तत्काल सुधार और उसके लिए प्रभावी जनजागरण भी उतना ही आवश्यक हो गया है। शासन व्यवहार में पारदर्शिता, सरलतम और न्यूनतम कानूनों के द्वारा प्रशासन, सुगम तथा शीघ्र परिणाम देने वाली न्याय-प्रणाली, काले धन की समाप्ति और राजनीति के अपराधीकरण व उसमें धन बल के बढ़ते प्रभाव पर रोक लगाने में सक्षम चुनाव-प्रणाली जैसे सभी सुधार तीव्र गति से करने की आवश्यकता है। वर्तमान शासन के भ्रष्टाचार को साहसपूर्वक उजागर करने वाले सतर्क व क्रियाशील लोगों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर दण्ड-विधान की भी आवश्यकता है। वस्तुतः आज जन-जीवन को त्रस्त कर रही सारी समस्याओं यथा - मँहगाई, बेरोजगारी व काले धन के लिए भ्रष्टाचार की विषबेल ही उत्तरदायी है, जो आज देश के विकास और अंतर्बाह्य सुरक्षा को भी प्रभावित कर रही है। काले धन की समस्या के संदर्भ में तो सरकार को देश -विदेश में जमा सम्पूर्ण काले धन को राष्ट्र की सम्पत्ति घोषित कर उसका अधिग्रहण करते हुए उसे देश के विकास में लगाना चाहिए।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा आज की विपरीत परिस्थिति में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए संघर्षरत सभी व्यक्तियों, संगठनों, संवैधानिक संस्थाओं व जागरूक प्रचारमाध्यमों के प्रयासों तथा न्यायपालिका की सतर्कता की सराहना करती है एवं देश की जनता का आवाहन करती है कि सब लोग पूर्ण वैयक्तिक शुचिता के साथ भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐसे सारे प्रयासों को मुखर जनमत का बल प्रदान करें तथा व्यक्ति-निर्माण की स्वस्थ पारंपरिक सामाजिक संस्थाओं का जतन करें।
ये प्रमुख प्रस्ताव पारित किए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा |
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