प्रमुख पवित्र धार्मिक ग्रंथों से लिया गया है आइए जानते है |

शान्ति मन्त्र वेदों के वे मंत्र हैं जो शान्ति की प्रार्थना करते हैं। ये सब हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ वेद से लिये गये हैं। वेद चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। उपनिषद इन्हीं वेदों के वेदान्तिक अंश हैं।



    बृहदारण्यक उपनिषद् तथा ईशावास्य उपनिषद्

    ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

    पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    तैत्तिरीय उपनिषद्

    ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। 
    शं नो भवत्वर्यमा। 
    शं नः इन्द्रो वृहस्पतिः। 
    शं नो विष्णुरुरुक्रमः। 
    नमो ब्रह्मणे। 
    नमस्ते वायो। 
    त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। 
    त्वमेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। 
    ॠतं वदिष्यामि। 
    सत्यं वदिष्यामि। 
    तन्मामवतु। 
    तद्वक्तारमवतु। 
    अवतु माम्। 
    अवतु वक्तारम्। 
    ''ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    तैत्तिरीय उपनिषद्, कठोपनिषद्, मांडूक्योपनिषद् तथा श्वेताश्ववतरोपनिषद्

    ॐ सह नाववतु।

    सह नौ भुनक्तु।

    सह वीर्यं करवावहै।

    तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    केन उपनिषद् तथा छांदोग्य उपनिषद्

    ॐ आप्यायन्तु ममांगानि वाक्प्राणश्चक्षुः

    श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि।

    सर्वम् ब्रह्मौपनिषदम् माऽहं ब्रह्म

    निराकुर्यां मा मा ब्रह्म

    निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणम् मेऽस्तु।

    तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते

    मयि सन्तु ते मयि सन्तु।

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    ऐतरेय उपनिषद्

    ॐ वां मे मनसि प्रतिष्ठिता

    मनो मे वाचि प्रतिष्ठित-मावीरावीर्म एधि।

    वेदस्य म आणिस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीरनेनाधीतेनाहोरात्रान्

    संदधाम्यृतम् वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु

    तद्वक्तारमवत्ववतु मामवतु वक्तारमवतु वक्तारम्।

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    मुण्डक उपनिषद्, माण्डूक्य उपनिषद् तथा प्रश्नोपनिषद्

    ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवाः।

    भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।

    स्थिरैरंगैस्तुष्टुवागं सस्तनूभिः।

    व्यशेम देवहितम् यदायुः।

    स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।

    स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

    स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।

    स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    शान्ति मन्त्र वेदों व वैदिक साहित्य में अन्यत्र भी हैं जिनमें से कुछ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।

    ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:

    पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

    वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:

    सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥

    ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

    यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।

    वैसे तो इस मंत्र के जरिये कुल मिलाकर जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है, परंतु विशेषकर हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करते हैं।

    ऐसे ही बृहदारण्यकोपनिषद् में मंत्र है, जिसे पवमान मन्त्र या पवमान अभयारोह मन्त्र कहा जाता है।

    ॐ असतो मा सद्गमय।

    तमसो मा ज्योतिर्गमय।

    मृत्योर्माऽमृतं गमय।

    ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

    बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28।

    इसका अर्थ है, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥

    यह मन्त्र मूलतः सोम यज्ञ की स्तुति में यजमान द्वारा गाया जाता था। आज यह सर्वाधिक लोकप्रिय मंत्रों में है, जिसे प्रार्थना की तरह दुहराया जाता है।

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