भारत विभाजन के समय बलिदान हुए RSS के कार्यकर्ताओं का सम्पूर्ण विवरण "ज्योति जला निज प्राण कि" पुस्तक अवश्य पढ़ें। कुछ अंश


ज्योति जला निज प्राण की भाग-1  विभाजन की विभीषिका और स्वयंसेवकों द्वारा निभायी गयी तेजस्वी भूमिका

"तीन चित्र - तीन दृश्य"

१५ अगस्त १९४७ नगर-नगर में उत्सव का माहौल था। कांग्रेस हाईकमान ने निर्देश जारी कर दिया कि सामूहिक रूप में जगह-जगह जश्न मनाया जाये, दीपावली को फीका करने वाली रोशनिया की जाये. वंदनवार बाधे जाये, इत्र-गुलाल उड़ाया जाये।


दावतों का आयोजन हो। जोरदार आतिशबाजियाँ की जाय। तिरंगी पताकाओ से नगर पाट दिये जाय। राजधानी दिल्ली तो देवराज इन्द्र की नगरी अमरावती को चिढ़ा रही थी। 

अपनी साज-सज्जा पर इठला रही थी। चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश। लोग खुशी से नाच रहे थे ।काफिले के काफिले लालकिले की ओर बढ़ रहे थे। 

सभी मागों ने उफनती नदियों का रूप ले लिया था। सबमें होकर जनप्रवाह लालकिले की ओर प्रवाहित हो रहा था। रोशनी के सागर ने धरती और आसमान को मिला दिया था। 

बड़े-बड़े गुब्बारों से आकाश आच्छादित हो गया था। पटाखे घनगर्जना कर रहे थे। नेताओं की जय जयकार के गमनभेदी नारे गुंजाए जा रहे थे। हेलीकॉटर पुष्पवर्षा कर रहे थे।

प० जवाहरलाल नेहरु तथा लॉर्ड माउण्टबेटन आदि शाही रथों  में सवार होकर लालकिले की तरफ बढ़ रहे थे। उनके रथ। चीटी की चाल से चलने को विवश थे। 

जनता के उत्साह ने अनुशासन और व्यवस्था के सारे बांधों को तोड़ दिया था। सैनिक टुकड़िया सलामी दे रही थी। तोपों से छूटे गोले धांय-धांय कर रहे थे। सैनिकों की बंदूकों से हवा में तड़ातड़ गोलियां दागी जा रही थी।

नेता हाथ हिलाकर जनता का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। खून की एक गेंद भी नहीं बही और आजादी आ गयी, बिना ढाल और खड्ग के प्रयोग के विदेशी सत्ता अपना  बोरिया बिस्तर समेटकर ले गयी, इन भावों को प्रकट करने वाले गीत ध्वनि विस्तारको से शतगुणित होकर जनमेदिनी के कानों में उड़ेले जा रहे थे। 

स्वतंत्रता देवी के अभिनन्दन स्वागत व गृहप्रवेश का शुभमुहूर्त जैसे-जैसे निकट आता जा रहा था जनउत्साह, उमंग और हर्ष का ज्वार उतना ही आसमान को छूने की होड़ लगा रहा था। अचानक निरभ्र आकाश पर काले-काले बादल छा गये।

सारे उत्सव का आंखों देखा शब्दचित्र प्रस्तुत कर रहे आकाशवाणी के उद्घोषक ने एकदम जनता का ध्यान नभ की ओर आकर्षित करते हुए घोषणा की 'देखो-देखो कैसा शुभ मुहूर्त !'

प्रकृति भी हमारे स्वातंत्र्य के स्वागत में सहभागिता करने को लालायित है। लो रिमझिम वर्षा भी होने लगी। कैसा है शुभ दिन। इन निर्मल जलकणों के माध्यम से देवगण हमारी आजादी का अभिनन्दन कर रहे है।

आशीर्वाद दे रहे हैं। लो वर्षा रुक गयी है। कैसा आकर्षक इन्द्रधनुष आकाश में इस पार से उस पार तक फैल गया है। देवगण आजादी की आरती उतार रहे है। 

गुलामी की काली रात का अंत होकर स्वाधीनता का प्रकाश  सर्वत्र फैल रहा है। कुछ ही क्षणों में गर्वोन्नत यूनियन जैक उतर जाएगा और अपना तिरंगा मुक्त आकाश में लहराने लगेगा।

आकाशवाणी का उद्घोषक जिस समय उस मनमोहक शब्दचित्र को खींच रहा था उसी समय उसके बिल्कुल विपरीत एक और चित्र उभर रहा था। अत्यन्त भयानक और वीभत्स!

क्रमशः

No comments

Theme images by dino4. Powered by Blogger.