कारगिल युद्ध के हिरों कारगिल युद्ध के योद्धा.

तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री का भी कहना है कि देश का विदेश मंत्री होने के बाद भी उन्हें 17 मई की सुबह कारगिल हमले के विषय में जानकारी प्राप्त हुई और उनसे कभी भी इस स्थिति के डिप्लोमेटिक स्तर पर क्या परिणाम होंगे इसके बारे में कभी भी नहीं पूछा गया । 


पाकिस्तानी सेना में इस कदर अफरा तफरी थी कि पाकिस्तान के तत्कालीन एडमिरल फैसुद्दीन बुखारी ने मुशर्रफ़ से सीधे -२ पूछ लिया था कि मुझे इस आपरेशन की कोई जानकारी नहीं है परन्तु मैं पूछता हूँ कि इतने बड़े मोबिलाइजेशन का क्या उद्देश्य है? हम एक उजाड़ सी जगह के लिए युद्ध करना चाहते है जिसे हमें वैसे भी सर्दियों के समय खाली करना पड़ेगा । मुशर्रफ़ के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था । 

पूरी दुनिया के साथ -२ पाकिस्तान के साथी चीन ने भी पाकिस्तान को कारगिल की चोटियों से अपनी सेना वापिस बुलाने के लिए कहा था । शुरुआत में पाकिस्तान लगातार कह रहा था कारगिल के पहाड़ो में मुजाहिदीन लड़ रहे है लेकिन वैश्विक दबाव में जब पाकिस्तान को अपने सैनिक वापस बुलाने पड़े तो वह पूरे विश्व के सामने बेनकाब हुआ कि पाकिस्तान मुजाहिदीनो को कंट्रोल कर सकता है। इस से पूरे विश्व में एक बात स्पष्ट होने लगी कि पाकिस्तान कश्मीर में मुजाहिदीनो के नाम पर आतंक फैला रहा है । 

परवेज़ मुशर्रफ़ कारगिल को अपनी सैनिक विजय मानता है किन्तु सत्य यह है कि पाकिस्तान ने अपने सैनिको को कारगिल की ऊँचाइयों पर मरने के लिए छोड़ दिया था । कई जवानो की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट्स से पता चला उनके पेट में घास थी यानी कि जवानों के पास खाने को भी कुछ नहीं था । 

परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी किताब में लिखा कि मिलिट्री ने जो अर्जित किया, डिप्लोमेसी में हमने वो गँवा दिया । लेकिन दूसरी तरफ नवाज ने एक इंटरव्यू में बोला कि जब तक मैं अमेरिका के पास मदद मांगने गया और अमेरिका मदद करने को तैयार हुआ, तब तक भारतीय फौजें कारगिल से लगभग सब जगह से पाकिस्तानियों को निकाल चुकी थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी ऐसे मे मैने पाकिस्तानी सेना के सम्मान को बचाया। 

मुशर्रफ़ का कहना है कि उसने नवाज़ से नहीं कहा था कि वो अमेरिका से बातचीत करे । लेकिन दूसरी ओर नवाज़ ने कहा कि जब वह अमेरिका जा रहे थे तो मुशर्रफ़ उनको एअरपोर्ट छोड़ने आया और उसने अमेरिका से बात करने को कहा ताकि पाकिस्तानी सेना के जवान कारगिल की चोटियों से सुरक्षित निकल सके, जहाँ अब भारतीय फौजे आगे बढ़ रही थी। 

पाकिस्तान जब से अस्तित्व में आया तब से किसी भी तरह की जवाबदेही वहाँ तय नहीं की जाती है । जिस आर्मी चीफ ने इतना बड़ी ग़लती की, वह पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना एक और सेना अधिकारी जिसके नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ी गयी उसे प्रमोशन मिला। ।        

कुल मिलकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान “फैनेटिक फोर “(चार सेना के अधिकारी जिन्होंने कारगिल प्लान बनाया था) की फैंटसी का शिकार हुआ और इस तरह एक असफल देश का शातिर प्रयास भी अफसल रहा । 

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