राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक माननीय "पंडित बच्छराज व्यास"

संघनींव में विसर्जित पुष्प - 
मा. पं. बच्छराज व्यास(1916-1972) राजस्थान के प्रथम प्रांत प्रचारक, 

जनसंघ के अध्यक् राजस्थान में संघ कार्य को मजबूत आधार प्रदान करनेवालों में प्रमुख थे - पं. बच्छराजजी व्यास । वे मूलतः डीडवाना के रहनेवाले थे, परंतु नागपुर में वकालत करते थे। डॉ. हेडगेवारजी के स्वर्गवास के बाद श्रीगुरुजी ने उन्हें राजस्थान में संघ कार्य करने के लिए भेजा।

बच्छराजजी 1944 में राजस्थान में संघ-विस्तार हेतु आए । 1942 में उदयपुर में सुंदरसिंहजी भंडारी (प्रधानाध्यापक) व अजमेर में श्री विश्वनाथजी लिमये (प्रचारक) द्वारा संघ कार्य प्रारंभ हो गया था। 1944 में राजस्थान में 50 शाखाएँ थीं व 1945 में यह संख्या 100 तक पहुँच गई । 1946 में मेरठ में संघ शिक्षा वर्ग में करीब 125 नियमित शाखाओं तथा 15-20 नई शाखाओं के स्वयंसेवक भाग लेने के लिए राजस्थान से गए।

संघ नीव में विसर्जित विसर्जित  पुष्प 

पं. बच्छराजजी व्यास ने पू. डॉ. हेडगेवारजी के मार्गदर्शन में संघ विचार को ग्रहण किया था। उसी प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीगुरुजी के आह्वान पर वे राजस्थान में संघ विस्तार हेतु आए । यह वह काल था, जिसमें अंग्रेजों की कुटिल नीति ने इस प्रदेश में संकुचित जातीयता और क्षेत्रीयता के बीज बो दिए थे। जोधपुर में सर डोनाल्ड फील्ड प्रधानमंत्री थे तो जयपुर में सर मिर्जा इस्माइल का दबदबा था और अजमेर में रेजिडेंट यूरोपियन थे ही। सब जगह विरोधबंदी कानून जारी थे और लोगों को डराना-धमकाना सहज था। उस समय लोगों में हिंदुत्व के प्रति आदर था, किंतु शासन का भय छोटे-बड़ों सभी में था। संकुचित जातिवादी संघर्ष, क्षेत्रीय विशेषताओं का दुरभिमान और अंग्रेजी जासूसों का जाल संघ कार्य विस्तार में प्रत्यक्ष बाधा थे।

पं. बच्छराजजी ने कार्यकर्ताओं के परामर्श से राजस्थान के कार्य को दिल्ली के सबल केंद्र के अंतर्गत रखने का सुझाव दिया तथा तत्कालीन दिल्ली प्रांत के प्रचारक वसंतरावजी ओक के मार्गदर्शन में ढाई वर्ष तक संघ - विस्तार का कार्य प्रचारक रहकर किया। उन दिनों सड़कें अधिक नहीं थीं। अतः या तो तृतीय श्रेणी के खचाखच भरे रेल डिब्बों में या फिर पैदल ही प्रवास करना होता था। प्रचारकों के साहसिक भ्रमणों व लंबी पैदल यात्राओं ने उस समय कार्यकर्ताओं में वह जुझारूपन निर्माण किया, जिसकी आवश्यकता थी। पं. बच्छराजजी व्यास यद्यपि राजस्थान में कार्य करनेवाले पहले प्रचारक नहीं थे, तथापि 1944-48 के कालखंड में जो प्रगति राजस्थान के संघ-कार्य में हुई, उसका मजबूत आधार उन्होंने ही तैयार किया था। 

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