भारत विभाजन के वे पन्द्रह दिन... पुस्तक के कुछ अंश - प्रशान्त पोळ


१९४७  की रात को विभजित हुआ देश जिसका गहरा घाव सदियों तक मही भरा जा सकता है |

अपने ही पराये हो गये धर्म के आधार पर देश का विभाजन हो गया जिसका मलाल आज भी है और उस घाव पर मरहम आज भी लगाया जा रहा है जो मरहन लगाया जा रहा है वो घाव भर नही रहा बल्कि और गहरा करता जा रहा है जिसकी कीमत हर दिन चुकानी पड़ रही है इसलिय एस विभाजन की त्रासदी में जो हुआ है उसे भुला नही जा सकता है उसे याद रखना बहुत जरुरी है इसके लिए कुछ पुस्तक के अंश है जी जिन्हें आप जरुर पड़े.   

भारत विभाजन के पन्द्रह दिन याद किजिए जो इन लेखों में बयां करतें हैं।

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