राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस "प्रतिज्ञा"
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ "प्रतिज्ञा"
1925 में संघ का कार्य प्रारम्भ होने के बाद प्रतिज्ञा को कार्य पद्धति में जोड़ा गया। आजादी से पहले की प्रतिज्ञा संघ की वर्तमान प्रतिज्ञा से भिन्न हैं।
प्रतिज्ञा क्यों आवश्यक है? क्या कारण है कि प्रतिज्ञा ली जाती है इसके पीछे क्या महत्व है।
तो आइए जानते हैं:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रतिज्ञा को इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि कोई भी कार्य करने के लिए कठोर बनना पड़ता है और यह प्रतिज्ञा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भगवा ध्वज को साक्षी मानकर ली जाती है। क्योंकि उसके लिए कृत संकल्पित हो जातें हैं।
भारतीय धर्म ग्रंथों तथा पौराणिक कथाओं में ऐसे अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं। भगवान श्री राम, भीष्म पितामह,भीम, अर्जुन, छत्रपति शिवाजी महाराज, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद,इसी कड़ी में और जुड़ गया है वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस जिसमें कार्यकर्ताओं को प्रतिज्ञित किया जाता है कि वें अपने देश, धर्म, और हिन्दू समाज, हिन्दू, संस्कृति के कृतसंल्पित होकर कार्य करें। इसलिए प्रतिज्ञा आवश्यक है।
“सर्वशक्तिमान श्री परमेश्वर…तथा अपने पूर्वजों का स्मरण कर…मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि अपने पवित्र हिंदू धर्म… हिंदू संस्कृति… तथा हिंदू समाज का संरक्षण कर… हिंदू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए… मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूं… संघ का कार्य… मैं प्रमाणिकता से… निस्वार्थ बुद्धि से… तथा तन मन धन पूर्वक करूंगा… और इस व्रत का मैं… आजन्म पालन करूंगा… भारत माता की जय”
श्रीराम को भगवान बनाने में उनके माता-पिता के बजाय प्रतिज्ञा का योगदान। (श्री राम द्वारा की गई प्रतिज्ञा- निशिचर हीन…..)।
अच्छे कार्य करते समय प्रतिज्ञा सम्बल बनती हैं। भीष्म, प्रताप, शिवाजी, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद और सुभाष चन्द्र बोस प्रतिज्ञा से प्राप्त सम्बल के कारण ही अपने उद्देश्य को प्राप्त कर पाये।
हम प्रतिज्ञा का प्रारम्भ सर्वशक्तिमान श्री परमेश्वर से करते हैं। प्रतिज्ञा में हम अपने पूर्वजों का स्मरण भी करते हैं।
प्रतिज्ञा व्यक्तिगत संकल्प हैं। यह केवल कण्ठस्थ ही नहीं हृदयस्थ भी हों।
प्रतिज्ञा मैं हम हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू समाज के संरक्षण का व्रत लेते हैं न कि रक्षा का। (गाय द्वारा छोटे बच्चे के संरक्षण का उदाहरण)
हिन्दू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति की प्रतिज्ञा। यह सर्वांगीण उन्नति ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः….’’ के भाव से ही होगी।
संघ का कार्य प्रमाणिकता से करूगाँ, प्रमाणिकता का अर्थ हैं जो कहे वहीं करें।
मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ ना की सदस्य (शिकंजी का उदाहरण)
संघ का कार्य निःस्वार्थ बुद्धि से करूँगा। – स्वयंसेवक के मन में किसी प्रकार का लोभ नहीं आना चाहिए। (हनुमान जी का उदाहरण)
संघ का कार्य तन-मन-धन पूर्वक करूगाँ। इसमें सर्वस्व समर्पण का भाव निहित हैं।
संघ का कार्य आजन्म करूगाँ न कि आजीवन। (रामप्रसाद बिस्मिल का उदाहरण)।
हमारे द्वारा की गई प्रतिज्ञा की फलश्रुति भारत माता की जय से होगी।
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