संघनींव में विसर्जित पुष्प संघवर्ती माधवराव मूले |
संघनींव में विसर्जित पुष्प मा. माधवराव मुले (1912-1978) पूर्व सरकार्यवाह, पंजाब के प्रारंभिक प्रांत प्रचारक
श्री 'माधवराज मुले का जन्म 7 नवंबर, 1912 को धनतेरस के दिन रत्नागिरि (महाराष्ट्र) के 'ओखरझील' नामक ग्राम में एक वेदपाठी ब्राह्मण परिवार में हुआ।
1931 में प.पू. डॉक्टरजी के साथ प्रवास का मौका मिला और समाजसेवा का पथ ही जीवनपथ निर्धारित हो गया। स्वातंत्र्य वीर सावरकर के छोटे भाई नारायणराव सावरकर, विश्वनाथ राव केलकर और काशीनाथ पंत लिमये जैसे समाजसेवाव्रती महानुभावों से भेंट ने यह निष्ठा और दृढ कर दी ।
वे अच्छे गायक, वादक एवं खिलाड़ी भी थे। उनके ये सारे गुण संघकार्य में सहयोगी बन गए। 1935 में सर्कस के सामान की नीलामी से खरीदे गए वाद्यों से 60 स्वयंसेवकों का पूर्ण गणवेशधारी संचलन निकाला।
पूजनीय डॉक्टरजी के निधन के तुरंत पश्चात् 21 जुलाई, 1940 को उनके मासिक श्राद्ध दिवस पर नागपुर शाखा से निकले 22 प्रचारकों में माधवराव भी थे । उनको पंजाब में कार्य हेतु नियुक्त किया गया। उस समय पंजाब का सरकारी वातावरण संघ के विरुद्ध था, परंतु इसकी चिंता न करते हुए उन्होंने तरुणों से संपर्क कर शाखाएँ चलाना प्रारंभ कर दिया। उनके आह्वान पर कई युवक पढ़ाई छोड़कर प्रचारक निकल पड़े। उन्होंने नगर-नगर के हिंदूप्रेमी व्यक्तियों, हिंदुत्वनिष्ठ संस्थाओं से संपर्क करना प्रारंभ कर दिया। दिन-रात अथक परिश्रम कर विभाजन के पूर्व स्थान-स्थान पर हो रहे आक्रमणों का मुकाबला करने की तैयारी की तथा उसके लिए आवश्यक साधन जुटाने की व्यवस्था की। विभाजन के समय 'पंजाब रिलीफ कमेटी' का गठन कर लाखों हिंदुओं को सहायता प्रदान की। जनता पार्टी जिस सीढ़ी के सहारे अभूतपूर्व व अप्रत्याशित विजय सिंहासन पर पहुँची थी, उसके सपनों की ईंट-दर- ईंट बनाने का दुःसाध्य कार्य माधवरावजी जैसे कुशल शिल्पी द्वारा ही किया गया था। पूरे विश्व में संघ कार्य के वे प्रेरणास्रोत हैं। सरकार्यवाह जैसे गुरुतर दायित्व का कुशलता से निवार्ह करते-करते 20 दिसंबर, 1978 को इस महान् आत्मा ने रुग्ण देह का परित्याग कर दिया। इस प्रकार एक समर्पित जीवन अनंत में विलीन हो गया ।
"हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने शरीर को सुडौल बनाए। वैसे ही हरेक समाज के सामाजिक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने समाज को रोग- मुक्त करे, सुसंगठित करे, बलवान बनाए। अगर कोई समाज किसी अन्य समाज का नाजायज लाभ उठाने के लिए अनावश्यक माँगें करना चाहता है तो उसको सांप्रदायिक कहा जा सकता है, परंतु अगर वह किसी का हक नहीं छीनना चाहता और किसी अन्य समाज को कष्ट नहीं पहुँचाता, केवल अपने को सुधारना चाहता हो, उसको सांप्रदायिक कहना बहुत बड़ा अन्याय है। इस प्रकार का रचनात्मक विचार लेकर ही संघ चल रहा है।'
- माधवराव मूले
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