आइए जानते हैं RSS संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कैसे पड़ा ?
RSS संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कैसे पड़ा ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम कैसे जुड़ा उसका पूरा इतिहास आज़ हम जानेंगे
कागज, पेन्सिल और पैसे के बिना सम्पन्न कार्यारंभ
संघ कार्य का शुभारंभ कैसे हुआ? इसका आज जब हम विचार करते हैं तो कुछ अटपटा, आश्चर्यजनक और असंभव सा लगता है। 97 वर्षों बाद संघ का कार्य आज देश-विदेशों में फैला, विशाल रूप में देखने को मिल रहा है। समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में संघ के विचारों से अनुप्राणित अनेक स्वायत्त स्वंतत्र संस्थायें कार्यरत हैं। सभी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं में वैचारिक समन्वय प्रस्थापित करने की योजना भी साकार की गई है। किंतु इस संघ कार्य का प्रारंभ बडे विलक्षण ढंग से हुआ। पू. डॉक्टरजी के घर की आर्थिक स्थिती बडी दयनीय थी। उनके बड़े बंधु सीताराम पंत पौरोहित्य का कार्य करते थे । उसमें जो कुछ थोडी बहुत आय होती थी, उससे घरपरिवार का खर्चा कैसे पूरा होता होगा, आज इसकी कल्पना मात्र हमें बेचैन करती है । किन्तु संघ कार्य प्रारंभ करते समय, एक नयी अखिल भारतीय भव्य संघटना का विचार कार्यान्वित करते समय पू. डॉक्टरजी ने कभी रुपये-पैसे की चिंता नहीं की - उसी भांति कागज पेन्सिल, फाईलें आदि लेखन सामग्री का उपयोग कर इस संगठन का नाम लिखकर कार्य का श्रीगणेश नहीं किया। इस संगठन का नाम क्या रहेगा, कौन कौन इसके पदाधिकारी रहेंगे, हरेक को कौनसी जिम्मेदारी सौंपी है, उसका काम क्या रहेगा, उसे कौन से अधिकार प्राप्त हैं - आदि बातें कागज पर लिखने का कभी प्रयास नहीं किया । अपने किशोर युवा स्वयंसेवकों के साथ तन्मयता से लाठी-खेल आदि कार्यक्रम संघस्थान पर करना और घर की बैठकों में तथा शाखा छूटने के बाद संघ स्थान पर ही सभी स्वयंसेवकों से पूर्णतया समरस होकर अनौपचारिक वार्तालाप - चर्चा आदि के साथ ही इस संगठन का कार्य प्रारंभ हुआ।
अपने संघ का नाम क्या हो, इस सम्बन्ध में, बैठकों में स्वयंसेवकों के साथ खुले मन से चर्चाए प्रारंभ हुई। हंसते खेलते चलनेवाली इन चर्चाओं में डॉक्टरजी ने किशोर युवा स्वयंसेवकों को मौलिक विचारों के चिंतन हेतु प्रवृत्त किया । वे स्वयं इन अनौपचारिक चर्चाओं का सूत्र संचालन करते और आवश्यकता पड़ने पर मार्गदर्शन भी करते । बैठक में उपस्थित सभी स्वयंसेवकों को अपने संगठन का नाम सुझाने और वह नाम क्यों उचित रहेगा- यह खुले दिल से बताने की छूट थी । एक स्वयंसेवक ने संगठन का नाम 'शिवाजी संघ' सुझाया और इस नामके समर्थन में उसने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस काल में स्वराज्य की स्थापना की, उस समय जो परिस्थिति थी, वैसी ही परिस्थिति आज भी भारत में विद्यमान है। शिवाजी ने जिस प्रकार स्वराज्य स्थापना का उपक्रम हाथों में लिया, अपने कार्य का स्वरूप भी वैसा ही है। भारत को स्वतंत्र करने के लिये हमें भी अथक परिश्रम करने पडेंगे इस कार्य में शिवाजी महाराज हमारे आदर्श हैं। इसलिये यही नाम सर्वाधिक उचित रहेगा।
एक अन्य स्वयंसेवक ने 'जरीपटका मंडल' नाम सुझाया। इस नाम के समर्थन में उस स्वयंसेवक ने कहा कि यह सही है कि समर्थ रामदास स्वामी और छत्रपति शिवाजी ने जुल्म ढहाने वाली बर्बर यवनी सत्ता को नष्ट कर स्वराज्य की स्थापना की - यही कार्य हमें भी करना है। किंतु भारत के अन्य प्रांतों में भी परकीय सत्ता को नष्ट करने के प्रयास हुए। महाराष्ट्र में समर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी ने जो कार्य किया वही कार्य पंजाब में गुरू गोविंदसिंह जी ने किया। अपना कार्य देशव्यापी होने के कारण केवल एक महान नेता का ही उल्लेख संघ के नाम में करना उचित नहीं होगा। इसकी अपेक्षा उन्हे प्रेरणा देने वाले जिस जरीपटका - ध्वज के प्रभाव से परकीय सत्ता नष्ट हुई - वह नाम उपयुक्त रहेगा इस दृष्टि से 'जरीपटका मंडल' अच्छा है। -
एक और स्वयंसेवक ने 'हिन्दू स्वयंसेवक संघ' - इस नाम को सर्वोत्तम बताने हुए कहा कि हमारा यह हिन्दुओं का संगठन है। इसमें अन्य धर्मीय नहीं आयेंगे। इस कारण ‘हिन्दू स्वयंसेवक संघ' नाम ही युक्ति संगत होगा। इसके बाद श्री पा. कृ. सावळापुरकर बोले, जो उस समय युवा विद्यार्थी थे। उन्होने संगठन का नाम 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' सुझाया और कहा कि हमारा कार्य राष्ट्रीय है। इस कार्य में, हमारा यह प्रयास है कि स्वयंप्रेरणा से, निरपेक्ष भावना से देशकार्य करने वाले कार्यकर्ता तैयार किये जाय - इस कारण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' ही सभी दृष्टि से युक्ति संगत और उचित नाम रहेगा ।
इस बैठक में २६ स्वयंसेवक उपस्थित थे । अनेक स्वयंसेवकों ने इस विषय में अपने विचार व्यक्त किये। उनमें से कुछ प्रमुख नामों का ही ऊपर उल्लेख किया है। चर्चा के अंत में डॉक्टरजी बोले और उन्होंने कहा कि भारत में हिंदू ही राष्ट्रीय है । इस कारण हिन्दू और राष्ट्रीय दोनों शब्दों से एक ही अर्थ बोध होता है- दोनों समानार्थी हैं। किंतु आज यह प्रचार हो रहा है कि भारत में रहनेवाले सभी का यह राष्ट्र है - एक प्रादेशिक राष्ट्रवाद की आत्मघाती कल्पना उभर रही है। इस प्रचार के कारण भारत को अपनी पावन मातृभूमि मानने वालों को और हमने यहां राज किया है, इसलिये भारत हमारा है - ऐसा मानने वाले स्वार्थी तत्वों को समान स्तर पर मानने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है । इससे राष्ट्र के लिये पोषक और विरोधी दोनों को ही राष्ट्रीय मानने की गल्लत - होगी। हमारा कार्य हिन्दू समाज को संगठित करने का है - हिन्दुत्व यही राष्ट्रीयत्व है यह हमारा आधार भूत विचार है। इसलिये संघ का नाम 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' रखना सर्वथा उचित होगा और जहां तक विचारों के प्रतिपादन का प्रश्न है, हम यही कहेंगे कि संघ केवल हिन्दु समाज को सुसंगठित कर इतना बलशाली बनाना चाहता है कि भारत की ओर शत्रु की नजर से देखने की इच्छा जगत में किसी की न हो सके। भारत में रहनेवाले अन्य धर्मीय दो-चार पीढियों के पूर्व तो हिन्दु ही थे। उनके भी मन में राष्ट्रीयता की आधारभूत मातृभूमि के प्रति भक्ति की भावना विद्यमान है। इस दृष्टिकोण को विकसित किये जाने की आवश्यकता है। इसके पूर्व, हिन्दू नाम से पहिचाने जानेवाले अपने हिंदू समाज को सुसंगठित और बलशाली बनाना हमारी प्रथम आवश्यकता है। सभी लोगों के हृदय में विशुद्ध राष्ट्र भाव प्रखरता से जागृत करते समय पहले यह कार्य हिन्दू समाज में करना आवश्यक है। अन्य धर्मावलम्बियों के हम विरोधी नहीं है। संघ कार्य का यह राष्ट्रीय स्वरूप तथा तदनुसार कार्यपद्धति ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' इस नाम से ही समाज के सामने रहना सर्वथा उचित रहेगा। डॉक्टरजी ने बैठक के समापन में उक्त आशय के विचार व्यक्त किये।
इतनी सीधी सरल और स्पष्ट भाषा में संघ कार्य की रूप रेखा प्रस्तुत करने वाला डॉक्टरजी का उक्त भाषण सुनने के बाद सभी ने एकमत से संगठन का नाम 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' निश्चित किया । नाम निश्चित करते समय हुए विचार विनिमय में मेरा भी सहभाग था, इस भावना से स्वयंसेवकों में कार्य सम्बन्धी चिन्तन करने का आत्मविश्वास भी बढा । उन सभी में जिम्मेदारी की भावना भी बढी । वे डॉक्टरजी की विचारशैली को धीरे धीरे आत्मसात करने लगे।
इस प्रकार, १९२६ के अप्रैल माह में रामनवमी के पूर्व, एक अभिनव पद्धति से संघ का नामकरण हुआ और वह भी संघ शाखा शुरू होने के छह माह बाद ! कार्य पहले शुरू हुआ और नामकरण बाद में हुआ' एक तरह से यह सृष्टि के नियमानुसार ही हुआ । जन्म होने के बाद ही शिशु का नामकरण होता है - संघ के बारे में भी यही हुआ।
- संघ कार्यपद्धति का विकास
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