संघनीव में विसर्जित पुष्प राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया


प.पू. 
राजेंद्र सिंहजी (रज्जू भैया) (1922-2004)

संघ के चतुर्थ सरसंघचालक:-

'तुम देश के महान् वैज्ञानिक की हत्या कर रहे हो ।' प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. सी. वी. रमन के निकट सहयोगी डॉ. कृष्णन ने प्रयाग के संघ प्रचारक श्री बापूराव मोघे से कहा तो उनका उत्तर था, "राजेंद्र अपने जीवन की दिशा निर्धारित करने में स्वयं समर्थ है, वह अपनी इच्छानुसार कोई भी मार्ग चुन सकता है, परंतु बड़ी-से-बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि भी उसे आत्मसंतोष नहीं दे पाएगी, जो संघकार्य से उसे प्राप्त होगी।"

देश के प्रथम श्रेणी के अणु-वैज्ञानिक हो सकने वाले इस प्रतिभाशाली नवयुवा ने संगठन विज्ञान में वह प्रतिभा दिखाई कि अणु-अणु बिखरा हिंदू समाज अणुशक्ति की भाँति सन्नद्ध होता गया।

यह कौशल देश ही नहीं, विदेश में भी प्रतिफलित हुआ। 11 मार्च, 1994 को पू. बालासाहब के दायित्व का उत्तराधिकार स्वीकार करनेवाले चतुर्थ सरसंघचालक प.पू. प्रो. राजेंद्र सिंहजी (रज्जू भैया) के संबंध में ही यह चर्चा है ।

उनका जन्म 29 जनवरी, 1922 को उ.प्र. के बुलंदशहर जनपद के बनैल ग्राम में हुआ। वे उच्च शिक्षित परिवार की उच्च शिक्षित संतान थे। भौतिक विज्ञान में एम.एस-सी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, कांग्रेस में भी कार्य किया, 'आनंद भवन' भी आना-जाना होता था, परंतु वहाँ की कार्यपद्धति उनको बाँध न सकी और संघ स्थान की ओर बढ़े कदम फिर पीछे न हटे।

अत्यंत सादी जीवनशैली, श्रीगुरुजी का 30 वर्षीय दीर्घ संपर्क और वैज्ञानिक बुद्धि, अध्यापन इतना प्रभावी था कि विश्वविद्यालय में सीधे नेकर में ही पहुँच जाते थे संघ प्रवास से लौटकर, पर मजाल है कि कक्षा में कोई अनुपस्थित रहे या उद्दंडता कर जाए।

वे 1966 में नौकरी छोड़कर संघकार्य में जुट गए। 1977 में सह सरकार्यवाह बने और 1978 में सरकार्यवाह, लेकिन 9 वर्ष बाद पुन: यह दायित्व श्री शेषाद्रिजी को सौंप दिया और स्वयं सह-सरकार्यवाह के रूप में कार्य करने लगे तथा 1994 में सरसंघचालक का दायित्व मिला तो अस्वस्थता कार्य में बाधा न रहे, एतदर्थ 10 मार्च, 2000 को यह गुरुतर दायित्व भी मा. कुप्. सी. सुदर्शनजी को सौंप दिया।

वह निश्रेयस की साकार प्रतिमा राम जन्मभूमि आंदोलन का इतिहास रचकर परमसत्य में विलीन हो गई।

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