संघनीव में विसर्जित पुष्प पूज्यनीय डाक्टर हेडगेवार जी |


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक:-


युगों बाद कोई ऐसी दिव्यात्मा जन्म लेती है, जो युगों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करने में समर्थ होती है। इसे ही लोग अवतार कहते हैं। वह ईश्वर, संत-महात्मा, शूर वीर, समाजसेवी या देशभक्त के रूप में प्रकट होता है ।

प्रमुख सरसंघचालक


चैत्रशुक्ला प्रतिपदा वि.स. 1946, 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर की धरती पर श्री बलिराम हेडगेवारजी के घर जन्म लिया। बालक केशव ही आगे चलकर संघ संस्थापक के नाम से जगत्-विख्यात हुआ।

संघ नींव में विसर्जित पुष्प


वे जन्मजात देशभक्त थे। बाल्यावस्था से ही विक्टोरिया के जन्मदिवस की मिठाई फेंकना, सीताबर्डी के किले से दासता के प्रतीक यूनियन जैक को उतारकर भगवा ध्वज फहराने का प्रयत्न करना और विद्यालय निरीक्षण के समय 'वंदे मातरम्' का उद्घोष करना जैसी घटनाएँ, डॉक्टरी की पढ़ाई करते अनुशीलन समिति के सदस्य बनकर क्रांति कार्यों में सहयोग, कांग्रेस में महत्त्वपूर्ण दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वाह ही नहीं, अपितु उसमें व्याप्त दोषों एवं अपूर्णता से आहत भी हुए। 1925 में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना कर सारे देश में हिंदू संगठन जैसे असंभव माने जानेवाले कार्य को संभव कर दिखानेवाला यौवनकाल और 1940 की 21 जून को इहलीला समाप्ति से पूर्व संपूर्ण भारतवर्ष का लघुरूप अपनी आँखों से देख लेनेवाले इस महापुरुष का दिव्य चरित्र समग्र रूप में व्यक्त कर सकने के सामर्थ्यवाले शब्द अभी तक गढ़े नहीं जा सके हैं।

अपने जीवन का कण-कण, क्षण-क्षण राष्ट्रार्पण करने का यह महान् आदर्श संघ कार्यकर्ताओं के लिए ही नहीं, अपितु किसी भी लोक-संग्रहाकांक्षी व्यक्ति या संगठन के लिए भी अजस्र प्रेरणास्रोत है

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