दश्चिण भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को मूर्तरूप देने वाले सेनापति मां. यादवराव जी जोशी


03 सितम्बर / जन्म दिवस – दक्षिण के सेनापति यादवराव जोशी

नई दिल्ली. दक्षिण भारत में संघ कार्य का विस्तार करने वाले यादव कृष्ण जोशी जी का जन्म अनंत चतुर्दशी (3 सितम्बर, 1914) को नागपुर के एक वेदपाठी परिवार में हुआ था. वे अपने माता-पिता के एकमात्र पुत्र थे. उनके पिता कृष्ण गोविन्द जोशी जी एक साधारण पुजारी थे. अतः यादवराव जी को बालपन से ही संघर्ष एवं अभावों भरा जीवन बिताने की आदत हो गयी.

यादवराव जी का डॉ. हेडगेवार जी से बहुत निकट सम्बन्ध था. वे डॉ. जी के घर पर ही रहते थे. एक बार डॉ. जी बहुत उदास मन से मोहिते के बाड़े की शाखा पर आये. उन्होंने सबको एकत्र कर कहा कि ब्रिटिश शासन ने वीर सावरकर की नजरबन्दी दो वर्ष के लिए बढ़ा दी है. अतः सब लोग तुरन्त प्रार्थना कर शांत रहते हुए घर जाएंगे. इस घटना का यादवराव जी के मन पर बहुत प्रभाव पड़ा. वे पूरी तरह डॉ. जी के भक्त बन गये. यादवराव जी एक श्रेष्ठ शास्त्रीय गायक थे. उन्हें संगीत का ‘बाल भास्कर’ कहा जाता था. उनके संगीत गुरू शंकरराव प्रवर्तक उन्हें प्यार से बुटली भट्ट (छोटू पंडित) कहते थे. डॉ. हेडगेवार जी की उनसे पहली भेंट 20 जनवरी, 1927 को एक संगीत कार्यक्रम में ही हुई थी.\

वहां आये संगीत सम्राट सवाई गंधर्व ने उनके गायन की बहुत प्रशंसा की थी, पर फिर यादवराव ने संघ कार्य को ही जीवन का संगीत बना लिया. वर्ष 1940 से संघ में संस्कृत प्रार्थना का चलन हुआ. इसका पहला गायन संघ शिक्षा वर्ग में यादवराव जी ने ही किया था. संघ के अनेक गीतों के स्वर भी उन्होंने बनाये थे. एमए तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण कर यादवराव जी को प्रचारक के नाते झांसी भेजा गया. वहां वे तीन-चार मास ही रहे कि डॉ. जी का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया. अतः उन्हें डॉ. जी की देखभाल के लिए नागपुर बुला लिया गया. वर्ष 1941 में उन्हें कर्नाटक प्रांत प्रचारक बनाया गया. इसके बाद वे दक्षिण क्षेत्र प्रचारक, अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख, प्रचार प्रमुख, सेवा प्रमुख तथा वर्ष 1977 से 84 तक सह सरकार्यवाह रहे. दक्षिण में पुस्तक प्रकाशन, सेवा, संस्कृत प्रचार आदि के पीछे उनकी ही प्रेरणा थी. ‘राष्ट्रोत्थान साहित्य परिषद’ द्वारा ‘भारत भारती’ पुस्तक माला के अन्तर्गत बच्चों के लिए लगभग 500 छोटी पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है. यह बहुत लोकप्रिय प्रकल्प है.

छोटे कद वाले यादवराव जी का जीवन बहुत सादगीपूर्ण था. वे प्रातःकालीन अल्पाहार नहीं करते थे. भोजन में भी एक दाल या सब्जी ही लेते थे. कमीज और धोती उनका प्रिय वेष था, पर उनके भाषण मन-मस्तिष्क को झकझोर देते थे. एक राजनेता ने उनकी तुलना सेना के जनरल से की थी. उनके नेतृत्व में कर्नाटक में कई बड़े कार्यक्रम हुए. वर्ष 1948 तथा वर्ष 1962 में बंगलौर में क्रमशः आठ तथा दस हजार गणवेशधारी तरुणों का शिविर, वर्ष 1972 में विशाल घोष शिविर, वर्ष 1982 में बंगलौर में 23,000 संख्या का हिन्दू सम्मेलन, वर्ष 1969 में उडुपी में विहि परिषद का प्रथम प्रांतीय सम्मेलन, वर्ष 1983 में धर्मस्थान में विहि परिषद का द्वितीय प्रांतीय सम्मेलन, जिसमें 70,000 प्रतिनिधि तथा एक लाख पर्यवेक्षक शामिल हुए. विवेकानंद केन्द्र की स्थापना तथा मीनाक्षीपुरम् कांड के बाद हुए जनजागरण में उनका योगदान उल्लेखनीय है.

वर्ष 1987-88 में वे विदेश प्रवास पर गये. केन्या के एक समारोह में वहां के मेयर ने जब उन्हें आदरणीय अतिथि कहा, तो यादवराव बोले, मैं अतिथि नहीं आपका भाई हूं. उनका मत था कि भारतवासी जहां भी रहें, वहां की उन्नति में योगदान देना चाहिए. क्योंकि हिन्दू पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं. जीवन के संध्याकाल में वे अस्थि कैंसर से पीड़ित हो गये. 20 अगस्त, 1992 को बंगलौर संघ कार्यालय में ही उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की.

संघनीव में विसर्जित पुष्प 


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