माननीय भाऊसाहब भुस्कुटे संघ प्रचारक क्षेत्र प्रचारक, गृहस्थ संन्यासी संघनीव में विसर्जित पुष्प



मा. भाऊसाहेब भुस्कुटे (1915-1991)

भाऊसाहेब का जन्म खंडवा जिले के बुरहानपुर कस्बे में संपन्न सरदार परिवार में हुआ। संपन्न परिवार होने के कारण वैभव की कोई कमी न थी। बचपन में उनको मिले संस्कारों का श्रेय उनकी माता अन्नपूर्णा देवी को जाता है।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। 1932 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद महाविद्यालय शिक्षा पूर्ण करने के लिए वे नागपुर आए। यहीं उनका संघ से परिचय हुआ। वे धंतोली शाखा के स्वयंसेवक बने । पू. डॉक्टरजी से संपर्क के कारण गोविंद भुस्कुटे की प्रचारक बनने की इच्छा जाग्रत् हुई, लेकिन इस इच्छा में उनके पिताजी व परिजन बाधक बने। 1939 तक ये मतभेद तीव्र हो गए। इन परिस्थितियों के बीच का रास्ता डॉक्टरजी ने निकाला। परिजन संघ कार्य करने का विरोध नहीं करेंगे, ऐसा आश्वासन डॉक्टरजी ने लिया । 1941 में भाऊसाहेब का विवाह हो गया। उसी वर्ष महाकौशल प्रांत में वे खंडवा विभाग प्रचारक नियुक्त हुए । 1959 में वे महाकौशल प्रांत कार्यवाह बने, इस दायित्व पर 1964 तक रहे। 1964 में भाऊसाहेब के पास मध्य क्षेत्र प्रचारक का गुरुतर दायित्व आया । आगामी 25 वर्ष तक उन्होंने इस दायित्व का निर्वहन किया ।

भाऊसाहेब के बौद्धिक अत्यंत मौलिक, लेकिन क्लिष्ट हुआ करते थे, लेकिन कभी-कभी बौद्धिक के विषय इतने महत्त्वपूर्ण और सामयिक होते थे कि उनके आधार पर पुस्तकें लिखकर छापी जाती थीं। जब भाऊसाहेब ने अपने जीवन के 75 वर्ष पूर्ण कर लिये तो कार्यकर्ताओं ने उनका अमृत महोत्सव मनाने की ठानी। कार्यक्रम 21 जनवरी, 1991 को करना तय हुआ, लेकिन 1 जनवरी, 1991 को ही हृदयाघात हुआ और वे चल बसे ।

भाऊसाहेब संपन्न होते हुए भी अत्यंत मितव्ययी रहे । सामान्य कार्यकर्ता की तरह जीवन भर कार्य किया । वास्तव में उन्होंने पू. डॉक्टरजी से यह शिक्षा पाई थी कि रामभक्ति करना यानी राम जैसा बनना।

भाऊसाहेब गृहस्थ जीवन बिताते हुए भी संन्यासी की श्रेणी के थे। इसलिए 'तीन पगों में सृष्टि नाप ले' की तरह यदि तीन शब्दों में भाऊसाहब के व्यक्तित्व को समेटना हो तो वे तीन शब्द होंगे – “आदर्श गृहस्थ संन्यासी ।"

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