राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी पदों का संक्षिप्त में विवरण प्रस्तुत है।
सरसंघचालक:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सरसंघचालक का दायित्व सबसे सम्मानीय है सरसंघचालक के दायित्व में जो भी सरसंघचालक का निर्वहन करते है उनके नाम के आगे पूज्यनीय नामक एक शब्द लगाया जाता है। सरसंघचालक का पद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सर्वोच्च सम्मान प्राप्त पद हैं। संवेधानिक रुप से सरसंघचालक बने व्यक्ति आजीवन बनें रहते हैं हां यदि वे चाहे तो अपने जीवित रहते यह दायित्व सरकार्यवाह जो निर्वाचित होते हैं उन्हें सौंप सकते हैं। इसका उदाहरण हमें सन् 2000-2009 त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहें श्री कुप्पाहल्ली सीतारमय्या सुदर्शन जी ने स्वयं अपनी इच्छा से वर्तमान सरसंघचालक डॉ मोहनराव जी भागवत को हस्तांतरित कर दिया था। वैसा ही संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी ने सन् 1940 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक प्रथम सरसंघचालक रहें उन्होंने भी अपने जीवित रहते हुए ही सरसंघचालक का दायित्व पूज्यनीय द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य "श्री गुरुजी" को सौंप दिया था। इसी कड़ी के अनुसार सन् 1973 में 'श्री गुरुजी' ने भी पत्र के माध्यम से पूज्यनीय मधुकर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य "बालासाहेब देवरस" को सौंप दिया था।
सरसंघचालक का दायित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में श्रृद्धा का विषय भी रहता है। सरसंघचालक पद के प्रति संघ के स्वयंसेवकों कि अटूट श्रृद्धा रहती है। संघ कि जिस भी शाखा पर सरसंघचालक जी का आगमन होता है स्वयंसेवकों में गौरव का भाव होता है। इसके लिए स्वयंसेवक युद्ध-स्तर तैयारियां करतें हैं।
संघ में सरसंघचालक कि बात बहुत मायने रखती है उन्होंने जो भी कहा वह कार्यकर्ताओं वह पत्थर कि लकीर खींच मानी जाती है। सरसंघचालक का पद सभी कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा स्रोत होता है।
संघ के सरसंघचालकों के नाम सूचीबद्ध:-
- डॉ केशव बलिराम हेडगेवार उपाख्य "डाक्टर जी" ( 1925-1940 )
- माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य "श्री गुरुजी" ( 1940-1973
- मधुकर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य "बालासाहेब देवरस" ( 1973-1994 )
- प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य "रज्जू भैया" ( 1994-2000 )
- कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य " सुदर्शन जी" ( 2000-2009 )
- डॉ मोहनराव मधुकर राव भागवत उपाख्य "भागवत जी" ( 2009-वर्तमान )
सरकार्यवाह:-
संघ में सरकार्यवाह का दायित्व सबसे अहम होता है संवेधानिक रुप से इस पद हेतु हर तीन वर्षों के बाद निर्वाचन किया जाता है, क्योंकि संघ कि प्रतिनिधि सभा द्वारा इस दायित्व के लिए किसी एक व्यक्ति का निर्वाचित सर्वसम्मति से घोषित किया जाता है इस पद पर आसीन दुबारा भी चुन लिए जाते हैं। सरकार्यवाह का कार्यकाल मुख्यरूप से तीन वर्ष का होता है। किन्तु सरकार्यवाह पद के लिए निर्वाचन कि कोई सीमा नहीं है। कोई व्यक्ति एक बार भी चुन लिया जा सकता है उससे अधिक बार भी। एक बात और है यह दायित्व संघ का संवैधानिक व्यवस्था में सबसे अधिक महत्वपूर्ण दायित्व है। किन्तु संघ के स्वयंसेवकों में संघ कि व्यवस्था में यह दायित्व उतना ही सम्मान रखता है जितना सरसंघचालक का। किन्तु दोनों पदों का सम्मान बराबर है किन्तु प्रोटोकॉल अलग अलग होता है। संघ के कार्यक्रमों में सरकार्यवाह और सरसंघचालक दोनों के लिए हि समान पद्धति से सम्मान दिया जाता है। सरकार्यवाह का दायित्व अहम फैसले लेने के लिए भी महत्वपूर्ण है किन्तु यहां पर सहसरकार्यवाह से भी विचार-विमर्श किया जाता है। किन्तु निर्णय स्वयं के द्वारा लिए जाते हैं।
सहसरकार्यवाह:-
सहसरकार्यवाह का दायित्व सरकार्यवाह के अधिनस्थ है। इस दायित्व का निर्वहन एक या उससे अधिक व्यक्तियों द्वारा इस दायित्व का निर्वहन किया जाता है । यह पद भी संघ का दूसरा निर्वाचित और संवैधानिक व्यवस्था का पद होता है। यह पद भी संघ में बहुत महत्व रखता है। संघ का यह भी पद निर्वाचन श्रेणी में हि आता है जिस तरह से सरकार्यवाह पद का निर्वाचन होता है। सहसरकार्यवाह हि आगे चलकर सरकार्यवाह और सरसंघचालक बनते हैं। सहसरकार्यवाह पद में संख्या निर्धारित नहीं रहती हैं। सरकार्यवाह का कोई भी निर्णय होता है वह सहसरकार्यवाह के माध्यम से ही संघ के कार्यकर्ताओं तक और शाखाओं तक पहुंचाया जाता है। क्योंकि प्रादेशिक कार्ययोजना इन्हीं के द्वारा नीचें तक पहुंचाई जाती है। इन्हें संघ के कार्य को विकेन्द्रीयकरण के लिए प्रभारी नियुक्त किया जाता है। यह प्रभार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि व्यवस्था में क्षेत्रों तथा प्रान्तों को लेकर केन्द्रित रहता है।
बौद्धिक शिक्षण प्रमुख:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बौद्धिक शिक्षण प्रमुख का दायित्व विचारों का तथा कार्ययोजना को लेकर किस प्रकार से बौद्धिक गतिविधियां शाखाओं तक पहुंचाई जाए बौद्धिक रुप से कार्यकर्ताओं का विकास किया जा सकता है इस बात को गंभीरता से लेते हुए अमल में लाया जाएं इस बात को लेकर बौद्धिक कार्यक्रम आयोजित किए जानें के लिए निर्देशित किया जाता है। इनके अधिनस्थ सह-बौद्धिक प्रमुख भी होते हैं। ये दायित्व प्रशिक्षण कि दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
शारीरिक शिक्षण प्रमुख:-
शारीरिक शिक्षण प्रमुख का दायित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि शाखाओं में होने वाले शारीरिक कार्यक्रमों से सम्बन्धित रहता है जहां पर शारीरिक कार्यक्रम कि योजना बनाना होता है। इसमें शाखा स्तर पर किन कार्यक्रम कार्यान्वयन करना है उन सभी का दिशा निर्देश प्रदान किया जाता है।
व्यवस्था प्रमुख:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में व्यवस्था प्रमुख एक ऐसा पद या जिम्मेदारी होती हैं जिसमें तमाम प्रकार कि व्यवस्थाओं और आय व्यय का लेखा जोखा रखने कि प्रमुख जिम्मेदारी होती है। इनके अधिनस्थ भी असिस्टेंट या सहायक होते हैं।
प्रचार प्रमुख:-
प्रचार प्रमुख यह दायित्व या पद जिम्मेदारी जिस प्रकार अन्य संगठनों में पत्राचार या मिडिया का काम होता है ठीक वैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह पद मिडिया और पत्राचार से सम्बन्धित कार्य देखते हैं। इनके भी सहायक और पद होते हैं जिन्हें सह प्रचार प्रमुख नाम से भी पुकारा जाता है।
सेवा प्रमुख:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सेवा भारती नाम से एक स्वतंत्र संगठन भी चलता है जिसे सेवा भारती के नाम पर चलता है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक संगठन हैं। सेवा प्रमुख एक ऐसा पद होता है जो संघ कि शाखाओं में सेवा कार्य और कार्यकर्ताओं के मन में सेवा भाव जगाने के लिए अलग अलग गतिविधियों को संचालित करता है। इनके भी सहायक होते हैं।
अन्य:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ऐसे और भी अन्य अनेकों पद हैं जो आवश्यकता के अनुसार क्रियान्वयन के लिए दिए जाते हैं। इन पदों को अनेकों नामों से कार्य के अनुरूप समाहित किया जाता है। तथा अलग अलग तरीकों के लिए भी जाने जाते हैं।
क्षेत्र संघचालक:-
यह पद एक सांगठनिक ढांचे में सम्मानजनक पद माना जाता है हैं जो कि आपको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में देखने को मिलता हैं यदि आपको प्रत्यक्षदर्शी के तौर पर देखना हो तो संघ के कार्यक्रमों में अवश्य जाएं और देखें।
एक बात और यह पद संघ के गृहस्थ जीवन में हैं उन वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को दिया जाता है।
क्षेत्र प्रचारक:-
क्षेत्र प्रचारक ऐसा पद हैं जो कि सबसे महत्वपूर्ण संगठनिक पद माना जाता है जो कि दो या तीन प्रान्त को मिलाकर बनाया जाता है या फिर उससे अधिक राज्यों को मिलाकर आरएसएस के सांगठनिक ढांचे में एक व्यवस्था बनाई गई है उसी के तहत ये पद हैं। ठीक अन्य पदाधिकारी के अनुसार ही सहायक होते हैं।
क्षेत्र प्रचारक का पद संघ के प्रचारक को ही दिया जाता हैं जो सम्पूर्ण जीवन अविवाहित रहकर कार्य करतें हैं।
क्षेत्र कार्यवाह:-
क्षेत्र कार्यवाह आरएसएस का महत्वपूर्ण संगठनिक पद होता है जिसकी जिम्मेदारी भी ग्रहस्थ कार्यकर्ताओं को हि दिया जाता है हैं जो लम्बे समय से संघ का कार्य करतें हुए आते हैं।
प्रांत प्रचारक:-
यह पद संघ के प्रचारक को प्रांतीय स्तर कि जिम्मेदारी को लेकर दिया जाता है।
प्रांत संघचालक:-
क्षेत्र संघचालक कि भांति ही प्रांत स्तर पर यह पद होता है। उसी सम्मान के साथ जो क्षेत्र संघचालक का होता है।
प्रांत कार्यवाह:-
क्षेत्र कार्यवाह कि तरह हि प्रांत स्तर पर यह पद होता है जैसा कि क्षेत्र कार्यवाह का होता है।
विभाग प्रचारक:-
विभाग प्रचारक भी संघ का महत्वपूर्ण योगदानकर्ता पद होता है जो कि विभाग स्तर पर जिम्मेदारी होती है जिसमें दो या उससे अधिक जिले आते हैं।
विभाग संघचालक:-
विभाग संघचालक भी उसी तरह का पद होता है जैसा प्रांत स्तर का होता है कि वह सिर्फ विभाग स्तर के लिए होता है।
विभाग कार्यवाह:-
विभाग कार्यवाह दो या दो से अधिक जिले में कार्य करने वाले गृहस्थ कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
जिले और अन्य निम्न स्तर:-
विभाग के बाद जिला तहसील नगर ग्राम में भी कुछ ऐसा ही संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि व्यवस्था में चलता है।
मुख्य धारा में संक्षिप्त विवरण:-
- राष्ट्रीय स्तर
- क्षेत्रीय स्तर
- प्रांतिय स्तर
- विभाग स्तर
- जिला स्तर
- खंड स्तर/ नगरीय स्तर
- उपखंड स्तर/मंडल स्तर/ग्राम स्तर/शाखा स्तर
शाखा में प्रमुख भूमिका:-
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि शाखाओं में जिम्मेदारी होती हैं जिसे शाखा कार्यवाह, मुख्य शिक्षक, गटनायक, और प्रथक -प्रथक प्रमुख भूमिका निभाई जाती हैं। यही आरएसएस कि रीढ़ कि हड्डी है शाखा जिसके द्वारा ही सबकुछ संभव हो सकता हैं।
संघ कि शाखाओं में हि शारिरिक बौद्धिक और मनोरंजन और मनौवैज्ञानिक रुप से कार्यकर्ताओं का निर्माण किया जाता है।
और भी आपको यदि गहराई से संघ को जानना है समझना है तों संघ से जुड़े और संघ को समझने का मौका आपको मिलेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने के लिए आपको संघ कि शिक्षा तथा शाखा आवश्यकता रुप से जाना होगा और संघ कि शिक्षा लेनी होगी तभी आप संघ को समझने का का प्रयास कर सकते हैं फिर वह वैचारिक रूप से या सांगठनिक क्षमता के आधार पर तो संघ से अवश्य जुड़े और हमारे इस लेख को और समाज जन तथा विद्यार्थियों तथा समाजजन तक पहुंचाएं।
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