इतिहास का एक एसा योद्धा शूरवीर रणबंका राठौड़ .



इतिहास का एक एसा योद्धा शूरवीर रणबंका राठौड़ .

वीरवर जयमल जी राठौड़ व कल्ला जी राठौड़ के बलिदान दिवस पर कोटिशः नमन। इतिहास में सभी युद्धों का निर्णय हार या जीत के आधार पर नही किया जा सकता। कुछ युद्धों का परिणाम योद्धाओं के शौर्य, बलिदान और शत्रु द्वारा किए जाने वाले सम्मान पर भी निर्भर करता है।


    जयमल और कल्ला जी राठौड़ वह दो वीर पुरुष है जिनकी वीरता से प्रभावित होकर अकबर ने इन वीरों को चतुर्भुज भगवान बताकर अकबर नामा मे इनके शौर्य का वर्णन करवाया था ।

    कई इतिहासकारों ने इन वीरो की शौर्य गाथा को इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण जगह दी है परंतु दुर्भाग्य पूर्ण रूप से हमारे इतिहासकारो ने पुस्तकों में अकबर को तो बहुत ही विशेष स्थान दिया है किन्तु भारत के ऐसे शूरवीरों का ज़िक्र भी पुस्तकों में ढूंढ पाना मुश्किल है।


    कर्नल जेम्स टॉड ने जयमल और कल्ला‌जी राठौड़ द्वारा अकबर और उसकी सेना के साथ किए संघर्ष को थर्मापायली जैसे युद्ध की संज्ञा दी है। जर्मन इतिहासकार द्वारा अकबर पर लिखी पुस्तक में जयमल को "Lion of Chittod" कहा गया है।


    जयमल और कल्ला जी राठौड़ का पूरा नाम जयमल मेड़तिया और कल्ला जी राठौड़ था। जयमल मेड़तिया, मीरा बाई के भाई भी थे।

    जयमल कौन थे?


    महान राजपूत योद्धा जयमल का जन्म सन् 17 सितंबर 1507 को हुआ था। सन् 1544 में जयमल 36 वर्ष की आयु में अपने पिता वीरमदेव की मृत्यु के बाद मेड़ता की राज गद्दी पर बैठे। पिता के साथ अनेक युद्धों में सक्रिय भाग लेने के कारण जयमल में बड़ी-बड़ी सेनाओं का सामना करने की सूझ बूझ थी। कुछ ही समय में जयमल मेड़तिया राठौड योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ बन चुके थे।


    कल्ला जी राठौड़ कौन थे?


    कल्ला जी राठौड़ मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई आसासिंह के पुत्र थे ! इनका जन्म मेड़ता राजपरिवार में आश्विन शुक्ल 8, विक्रम संवत 1601 को हुआ था।भक्तिमती मीराबाई इनकी बुआ थीं !

    ऐतिहासिक युद्ध -


    23 फरवरी, 1568 की रात में चित्तौड़ के किले में उपस्थित सभी क्षत्राणियों ने जौहर किया और अगले दिन 24 फरवरी को मेवाड़ी वीर किले के द्वार खोल कर भूखे सिंह की भाँति मुगल सेना पर टूट पड़े। भीषण युद्ध होने लगा।

    राठौड़ जयमल के पाँव में गोली लगी। उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी; पर उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। कल्ला जी ने यह देखकर जयमल के दोनों हाथों में तलवार देकर उन्हें अपने कन्धे पर बैठा लिया। इसके बाद कल्ला जी ने अपने दोनों हाथों में भी तलवारें ले लीं।

    चारों तलवारें बिजली की गति से चलने लगीं। मुगल लाशों से धरती पट गयी। अकबर ने यह देखा, तो उसे लगा कि दो सिर और चार हाथ वाला कोई देवता युद्ध कर रहा है। युद्ध में वे दोनों बुरी तरह घायल हो गये। कल्ला जी ने जयमल को नीचे उतारकर उनकी चिकित्सा करनी चाही; पर इसी समय एक शत्रु सैनिक ने पीछे से हमला कर उनका सिर काट दिया। सिर कटने के बाद के बाद भी उनका धड़ बहुत देर तक युद्ध करता रहा।

    चित्तौड़ के तीसरे साके के प्रमुख नेतृत्वकर्ता वीरवर जयमलजी राठौड़ और कल्लाजी राठौड़ की रहे है |

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